Tuesday, November 26, 2013

सांप्रदायिक दंगे जिम्मेबार कौन

सांप्रदायिक दंगे जिम्मेबार कौन



ये सरकार जिस तरह साँप्रदायिक दंगों को हिन्दुओं के विरूद्ध हथियार के रूप में प्रयोग कर रही है। उसे देखकर तो लगता है कि जिहादी हमलों में इतने हिन्दुओं की जान जाने के बावजूद सरकार को मुस्लिम जिहादी मानसिकता का एहसास ही नहीं है । 


इस सरकार की जानकारी के लिए हम बता दें कि आज तक देश में हुए दंगों में से 95% दंगों की शुरूआत अल्पसंख्यकों ने की है। इन में से भी अगर 2-4% दंगों को छोड़ दें तो बाकी सब की शुरूआत मुसलमानों में छुपे जिहादियों ने की है ।


आम-मुसलमान खुद को उतना ही भारतीय मानता है जितना बाकी भारतीय मानते हैं इसलिए उसे हिन्दू पूजा पद्धति बोले तो भारतीय पूजा पद्धति पर कोई तकलीफ नहीं होती ।


तकलीफ होती है तो उन मुस्लिम जिहादियों को जो खुद को औरंगजेब और बाबर के उतराधिकारी मानकर इस भारत को इस्लामी राज्य बनाने के षड़यन्त्र को इस सैकुलर गिरोह के सहयोग से व अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए बने विशेष कानूनों के दुरूपयोग से हिन्दुबहुल क्षेत्रों पर लगातार हमला कर आगे बढ़ा रहे हैं ।


अगर आपको नहीं पता तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इतिहास इन तथ्यों का साक्षी है कि कितने ही बार इन जिहादियों ने अल्लाह हो अकबर के नारे लगाते हुए 



मन्दिरों शिवाल्यों व अन्य पूजा स्थलों पर हमला कर तबाही मचाई व अनगिनत हिन्दुओं को इस्लाम के नाम पर हलाल किया । 


इस हिन्दुविरोधी देशद्रोही सैकुलर जिहाद व धर्मांतरण समर्थक सरकार व इसके सहयोगी गद्दार मीडिया ने बार-बार साँप्रदायिक दंगों का जिकर कुछ इस अन्दाज में किया कि मानो इन दंगों के लिए हिन्दू जिम्मेवार हों।


हम इतने बड़े पैमाने पर हिन्दुओं के विरूद्ध हुई हिंसा के बारे में लिखना नहीं चाहते थे। परन्तु इस सेकुलर गिरोह द्वारा सामप्रदायिक दंगों के बहाने जिहादियों द्वारा किए जा रहे हिन्दुओं के कत्लों को जायज ठहराने की दुष्टता ने हमें ये सब लिखने पर मजबूर कर दिया। हमें परेशानी मे डाल दिया कि कहाँ से शुरू करें इन मुस्लिम जिहादियों द्वारा शुरू किए गए दंगों का लेखा-जोखा। अधिकतर देशद्रोही चैनल तो जिहादियों का समर्थन करने व हिन्दुओं को अपमानित करने में मुस्लिम जिहादियों को भी पीछे छोड़ देते हैं । अगर हम 1945 तक हुए हिन्दुओं के नरसहारों को न भी लिखें तो भी इन मुस्लिम जिहादियों ने 1946 के बाद ही हिन्दुओं पर इतने जुल्म ढाये हैं कि इनके बारे में सोचते ही रौंगटे खड़े हो जाते हैं । 


मन ये सोचने पर मजबूर हो जाता है कि हिन्दू ये सब कैसे और क्यों सहन कर गए ?


इतना कुछ हो जाने पर भी ये गिरोह जो खुद को सैकुलर कहता है इन जिहादियों का साथ क्यों दे रहा है ? 


क्यों इस गिरोह को हिन्दुओं के कत्ल करवाने में फखर महसूस होता है विजय का एहसास होता है ?


क्यों और कैसे ये गिरोह हिन्दुओं के हुए हर नरसंहार के बाद जिहादियों के पक्ष में महौल बनाने पर उतारू हो जाता है ? 


क्यों ये गिरोह हिन्दुओं को धोखा देकर उन्हें ही कत्ल करवाने में कामयाब जो जाता है ? 


क्यों ये गिरोह हिन्दुओं के आक्रोश से बच जाता है ?


क्यों हिन्दू एकजुट होकर हिन्दुओं के कातिलों व उनके समर्थकों पर एक साथ हमला नहीं बोलते ? 


हम शुरू करते हैं 1946 से जब कलकता में मुसलमानों द्वारा किए गए हमलों में 5000 हिन्दुओं का कत्ल किया गया । 


फिर नवम्बर में पूर्वी बंगाल के नौखली जिला में हिन्दुओं का नरसंहार किया गया सब के सब हिन्दुओं को वहां से भगा दिया गया उनकी सम्पति तबाह कर दी गई । 


विभाजन के दौरान कम से कम 20 लाख हिन्दू-सिखों का कत्ल सिर्फ वर्तमान पाकिस्तान में किया गया ।


सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1947-1951 तक जिहादी मुसलमानों द्वारा किए गये अत्याचारों के परिणामस्वरूप एक करोड़ हिन्दू-सिख भारत भागने पर मजबूर किए गए । 


इसमें चौंकाने वाला तथ्य ये है कि वर्तमान भारत में भी इस दौरान हिन्दुओं पर हमले किए गए और तब की सैकुलर सरकार तमाशा देखती रही जिहादियों की रक्षा में लगी रही हिन्दुओं को मरवाती रही । 


फरवरी 1950 में 10,000 हिन्दुओं का ढाका और बंगला देश(तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) के अन्य भागों में नरसंहार किया गया । उसके बाद के कुछ महीनों में लाखों हिन्दुओं को वहां से भगाया गया । 


1950-60 के बीच में 50 लाख हिन्दुओं को मुस्लिम जिहादियों द्वारा पूर्वी पाकिस्तान से भारत भगाया गया ।


1971 में पाकिस्तानी सेना ने बांगलादेश मुक्ति अंदोलन के दौरान 25 लाख हिन्दुओं का कत्ल किया । जिसके परिणामस्वरूप अधिकतर हिन्दू सुरक्षा की खोज में भारत भाग आये । 

उस वक्त की सरकार ने इन हिन्दुओं की रक्षा के लिए क्या कदम उठाए ? कोई नहीं । आखिरकार बांगलादेश बनवाने का दावा करने वाले इन लोगों ने क्यों हिन्दुओं को लावारिस छोड़कर मरने पर मजबूर किया ?


सिर्फ इसलिए कि हिन्दू कभी संगठित होकर गैर हिन्दुओं पर हमला नहीं करता या फिर इसलिए कि कभी एकजुट होकर संगठित वोट बैंक नहीं बनाता ?


1989 में बांगलादेश में सैंकड़ों मन्दिर गिराए गए ।


1947 से 2000 के बीच जिहादी हमलों में 6 लाख चकमा बनवासियों का नामोनिशान मिटा कर मुसलमानों ने उनकी जमीन पर कब्जा कर उनकी औरतों को जबरन मुसलमानों के साथ विवाह करने को बाध्य किया ।


जागो ! हिन्दू जागो ! 


लड़ाई से भागो मत एकजुट होकर लड़ों वरना मिटा दिए जाओगे इन मुस्लिम जिहादियों व इनके आका धर्मनिर्पेक्षतावादियों द्वारा ।


1947-48 में मुसलमानों ने कश्मीर के जिस हिस्से पर कब्जा किया(पी ओ के) वहां से सब हिन्दुओं का नामोनिशान मिटा दिया गया ।


1985 में अलकायदा की स्थापना के बाद भारत समेत सारे भारत में मुस्लिम जिहाद के एक नये दौर की शुरूआत हुई ।


1986 में कश्मीर में जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर एक तरफा हमले शुरू किए गए । जिहादियों ने एक को मारो एक का बलात्कार करो सैंकड़ों को भगाओ की नीति अपनाई । मुसलमानों ने मस्जिदों से लाउडस्पीकरों द्वारा जिहाद का प्रचार प्रसार किया । उर्दू प्रैस के द्वारा भी जिहाद का प्रचार प्रसार किया गया । जिहाद शुरू होते ही हिन्दुओं के पड़ोसी मुसलमान ही उनके शत्रु बन गए । मुसलमानों ने संगठित होकर हिन्दुओं को निशाना बनाना शुरू किया । 


जिहादियों की भीड़ इक्ट्ठी होकर हिन्दुओं के घर में जाती उन पर हर तरह के जुल्म करने के बाद उनको दूध पीते बच्चों सहित हलाल कर देती । यहाँ समाचार दिया जाता पाकिस्तानी आतंकवादियों ने ये सब कर दिया । लेकिन सच्चाई यही थी कि हिन्दुओं को हलाल करने वाले उनके पड़ोसी मुसलमान ही होते थे। जो हिन्दुओं को कत्ल करने के बाद अपने-अपने घरों में रहते थे ।


कश्मीर के अधिकतर पुलिसकर्मी व महबूबामुक्ती जैसे नेता इस्लाम के नाम पर इन जिहादियों का हर तरह से सहयोग करते थे अभी भी कर रहे हैं । कई बार तो बाप व भाईयों के हाथ पैर बांध कर उनके परिवार की औरतों की इज्जत लूटकर उसके फोटो खींच कर बाप और भाईयों को ये सब देखते हुए दिखाया जाता था । बाद में ये तसवीरें हिन्दुओं के घरों के सामने चिपका दी जाती थी । परिणाम जो भी हिन्दू इन तसवीरों को देखता वही अपने परिवार की औरतों की इज्जत की रक्षा की खातिर भाग खड़ा होता । और उसके पास रास्ता भी क्या था सिवाय हथियार उठाने या भागने के । हिन्दुओं ने हथियार उठाने के बजाए भागना बेहतर समझा । क्योंकि अगर वो हथियार उठाते तो ये सैकुलर नेता उन्हें अल्पसंख्यकों बोले तो मुसलमानों का शत्रु बताकर जेल में डाल देते फांसी पर लटका देते । 


हमें हैरानी होती है इन धर्मनिर्पेक्षता की बात करने वालों पर जो हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों के बारे में देश-दुनिया को जागरूक करने वालों को आतंकवादी कहते हैं, साम्प्रदायिक कहते हैं और इन सब जुल्मों-सितम को राजनीति बताते है हिन्दुओं को गुमराह करते है । ये सब दुष्प्रचार सिर्फ जिहादी ही नहीं बल्कि जिहादियों के साथ-साथ इनके ठेकेदार धर्मनिर्पेक्षता के पर्दे में छुपे ये राक्षस भी करते हैं जो अपनों का खून बहता देखकर भी अपनी आत्मा की आवाज नहीं सुनते । न केवल इन जिहादी आतंकवादियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं पर सरकार भी बनाते हैं और सत्ता में आने के बाद जिहादियों के परिवारों का जिम्मा उठाते हैं । उनको हर तरह की मदद की जिम्मेवारी लेते हैं जिहादी आतंकवादियों के परिवारों को आर्थिक सहायता देते हैं । हिन्दुओं को अपने घरों से भागने पर मजबूर करते हैं । जिहादियों के विरूद्ध सेना द्वारा कार्यवाही शुरू होने पर जिहादियों के मानवाधिकारों का रोना रोते हैं मतलब हर हाल में जिहादियों का साथ देते हैं ।



अगर आप सोचते हैं कि हम कोई पुरानी बात कर रहे हैं तो आप गलत हैं। जो कुछ कश्मीर में हिन्दुओं के साथ किया गया वो ही सबकुछ अब जम्मू के मुस्लिमबहुल क्षेत्रों में दोहराय जाने की तैयारी हो चुकी है तैयारी ही क्यों उसकी तो शुरूआत भी हो चुकी है पिछले दिनों जब डोडा उधमपुर में मई 2006 में 36 हिन्दुओं का कत्ल किया गया तो इस नरसंहार में बच निकलने में सफल हुए हिन्दुओं ने बताया कि उन्हें ये देख कर हैरानी हुई कि जो मुस्लिम जिहादी हिन्दुओं को इस तरह कत्ल कर रहे थे वो इन हिन्दुओं के पड़ोसी मुसलमान ही थे । जम्मू के मुस्लिमबहुल क्षेत्रों में इसके अतिरिक्त भी कई नरसंहार हो चुके हैं । 


पिछले दिनों हिमाचल के साथ लगते जम्मू के एक गाँव में गांव वालों ने जब एक मुस्लिम जिहादी को मार गिराया तो वहां के मुस्लिम जिहादी मुख्यमन्त्री के इशारे पर पुलिस इन गांव वालों की जान के पीछे पड़ गई । बेचारे गाँव वालों ने हिमाचल के चम्बा में छुप कर जान बचाई । 


जरा आप सोचो जो गुलामनबी आजाद माननीय न्यायालय से फांसी की सजा प्राप्त अफजल को निर्दोष कहता है

 क्या वो हिन्दुओं द्वारा मार गिराय गए जिहादी को आतंकवादी मान सकता है ? 

क्या आपको याद है कि 20-20 बिश्व कप में भारत द्वारा पाकिस्तान को हरा देने के बाद जम्मू विश्वविद्यालय में देशभक्त हिन्दुओं द्वारा इस जीत की खुशी में भारत माता की जय बुलाय जाने के बाद किस तरह इन हिन्दुओं की पिटाई विशवविद्यालय के जिहादी मुसलमानों ने की और किस तरह सरकार के इशारे पर बाद में पुलिस ने उन दुष्टों के विरूद्ध कार्यवाही करने के बजाए इन देशभक्तों को ही निशाना बनाया ? 





1993 तक कश्मीर में अधिकतर मन्दिर तोड़ दिय गए । आज सारे का सारा कश्मीर हिन्दुविहीन कर दिया गया है और ये गिरोह बात करता है हिन्दू आतंकवाद की साँप्रदायिकता की । कोई शर्म इमान नाम की चीज है कि नहीं । तब कहां चला जाता है ये सैकुलर गिरोह जब हिन्दुओं के नरसंहार होते हैं । तब तो ये सारा गिरोह जिहादियों का साथ देता है हिन्दुओं के नरसंहार करने वालों को गुमराह मुसलमान बताकर उनको सजा से बचाने के नय-नय बहाने बनाता है जिहादियों के समर्थन में सड़कों पर उत्तरता है । 


 आप जितने मर्जी कानून बना लो अब जिहादियों द्वारा हिन्दुओं को निहत्था मरने पर कोई बाध्य नहीं कर सकता । 



जो हमला करेगा वो मरेगा । यह हमारी नहीं सब हिन्दुओं के उस मन की आवाज है जो लाखों हलाल हो रहे हिन्दुओं की चीखें सुन कर अब और हिन्दुओं को इस तरह न मरने देने की कसम उठा चुके हैं । जिहादियों को उनके किए की सजा जरूर मिलेगी और ऐसी सजा मिलेगी कि उनका हर हिन्दू के कत्ल में साथ देने वाले धर्मनिर्पेक्षता के चोले में छुपे ये राक्षस भी नहीं बचेंगे ।






1969 में गुजरात,1978 में अलीगढ़ ,1979 में जमशेदपुर, 1980 में मुरादाबाद,1982 और 88 में मेरठ,1989 में भागलपुर । कौन नहीं जानता कि ये सब के सब सांप्रदायिक दंगे मुसलमानों ने शुरू किए थे । बेशक बाद में इन में से कुछ दंगों में मुसलमानों को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी थी ।


जनवरी 1993 में भी मुम्बई में दंगे इन मुस्लिम जिहादियों ने ही शुरू किए थे और उसके बाद 12 मार्च 1993 को मुम्बई में ही बम्ब विस्फोट कर 600 हिन्दुओं का कत्ल किया व हजारों को घायल किया करोड़ों की सम्पति तबाह की सो अलग ।


15 मार्च 1993 में सी पी आई एम के सदस्य रासिद खान ने कलकता में बम्ब विस्फोट कर 100 लोगों का कत्ल किया ।


फरवरी 1998 में कोयम्बटूर में इन जिहादियों ने बम्ब विस्फोट कर अडवाणी जी को कत्ल करने की कोशिश की । इन बम्ब विस्फोटों में सैंकड़ो हिन्दुओं का कत्ल किया गया । इन हमलों के दोषी मदनी को इस सैकुलर सरकार ने न केवल सजा से बचाया बल्कि और हिन्दुओं का खून बहाने के लिए जेल से निकाल कर खुला छोड़ दिया ।


क्या आप भूल गए किस तरह गोधरा में 27 फरवरी 2002 को 2000 मुस्लिम जिहादियों की भीड़ जिसका नेतृत्व कांग्रेसी पार्षद कर रहा था, ने 58 हिन्दुओं को रेल के डिब्बे में जिन्दा जला दिया व इतने ही हिन्दुओं को घायल कर दिया, जो इन जिहादियों के बढ़ते हुए दुस्साहस को दिखाता है । बाद में किस तरह इस सैकुलर बोले तो देशद्रोही सरकार ने इन हिन्दुओं को जलाने वालों को बचाने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त जज द्वारा की जा रही जांच को बाधित करने का षड़यन्त्र किया ! 


अभी 2008 में किस तरह इन जिहादियों ने आतंकवाद के विरोध में रैली करने जा रहे सांसद योगी अदित्यनाथ पर आजमगढ़ में हमला बोल दिया । यह कैसी धर्मनिर्पेक्षता है जिसके राज में एक सांसद तक मुस्लिम जिहादी आतंकवाद के विरूद्ध बोलने की कोशिश करने पर मुसलमानों के हमले का शिकार हो जाता है ? जिस देश में जिहादी आतंकवाद के विरूद्ध बोलने पर एक सांसद तक सुरक्षित नहीं उस देश में आम हिन्दू बिना हथियार उठाये कैसे सुरक्षित रह सकता है ? 


ठीक इसी तरह महाराष्ट्र धुले में इन जिहादियों ने आतंकवाद के विरोध में होने वाली रैली को दंगा फैला कर वहां की सरकार के सहयोग से रूकवाने में सफलता हासिल की । किस तरह उत्तर प्रदेश में इन जिहादियों ने बी एस पी नेता की हत्या की और किस तरह वहां की तत्कालीन सैकुलर जिहाद समर्थक सरकार ने उन जिहादियों की सहायता की ।


उत्तर प्रदेश में मऊ मे हुए दंगों को कौन भुला सकता है जब एक मुस्लिम जिहादी विधायक अंसारी ने गाड़ी में घूम-घूम कर मुसलमानों को उकसा कर हिन्दुओं के कत्ल करवाये । हिन्दूसंगठनों के कितने ही कार्यकर्ता इन जिहादियों के हमलों में आज तक मारे जा चुके हैं । आये दिन हिन्दुओं पर हमला करना इन मुस्लिम जिहादियों की आदत सी बनती जा रही है ।


हिन्दू तो आत्मरक्षा में मजबूरी में जवाबी कार्यवाही करता है वो भी कभी-कभी पानी सिर के ऊपर से निकल जाने के बाद । हिमाचल के चम्बा में 1998 में इन मुस्लिम जिहादियों ने दर्जनों हिन्दुओं का कत्ल कर दिया । कत्ल होने वाले सभी मजदूर थे । कत्ल करने वाले चम्बा के ही मुस्लिम जिहादी हैं जो आज तक बिना किसी सजा के खुले घूम रहे हैं क्योंकि पुलिस के पास ऐसे जिहादियों से निपटने के लिए कोई कड़ा कानून नहीं है। 


सुन्दरनगर मण्डी में मुस्लिम प्रधान चुने जाने के बाद मुसलमानों में छुपे जिहादियों ने पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाये । मण्डी में ही उत्तर प्रदेश के एक मुस्लिम जिहादी जो दर्जी का काम करता था, ने हिन्दू लड़की पर तेजाब फैंक दिया । आपको हैरानी होगी कि उस वक्त मंडी में पुलिस अधीक्षक भी मुस्लिम ही था । बाद में ये जिहादी पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहा ।


हिमाचल में ही आए दिन जगह-जगह सरकारी जमीन पर कब्र बनाकर कब्जा करने के प्रयत्न किये जा रहे हैं । हिन्दुओं द्वारा विरोध किए जाने पर अल्पसंख्यवाद का सहारा लिया जा रहा है । 


कश्मीर के जिन मुस्लिम जिहादियों ने हिन्दुओं का नामोनिशान मिटा दिया वो भी अपने आप को आम मुसलमान बताकर हिमाचल व देश के अन्य हिन्दुबहुल हिस्सों में खुले घूम रहे हैं कभी मजदूरों के वेश, में तो कभी कपड़ा बेचने वालों के वेश में, तो कभी पल्लेदारों के वेश में प्रशासन उनका सहयोग कर रहा है । आम लोग इनकी बढ़ती संख्या को देखकर कोई अनहोनी न हो जाए ये सोच कर डर रहे हैं। हिन्दू संगठनों से इनके विरूद्ध कार्यवाही करने की गुहार लगा रहे हैं । हिमाचल का आम हिन्दू ये सोचने पर मजबूर हो गया है कि कहीं ये लोग कश्मीर में सेना की कार्यवाही से बचने के लिए तो हिमाचल नहीं आते । क्योंकि ये अक्सर सर्दियों में तब आते हैं जब पहाड़ों पर बर्फ पड़ जाती है जहां ये गर्मियां शुरू होते ही छुप जाते हैं व मौका पाते ही हिन्दुओं पर हमला बोल देते हैं । हिमाचल का चम्बा का डोडा के साथ लगता क्षेत्र तो इन जिहादियों की पक्की शरणगाह बनचुका है । सरकारी जमीन पर लगातार कब्जा किया जा रहा है हिन्दुओं की जमीन खरीद कर क्षेत्र को मुस्लिमबहुल बनाया जा रहा है और प्रशासन सो रहा है ।


कुछ वर्ष पहले बिलासपुर में एक मुस्लिम बस चालक/परिचालक ने हिन्दू लड़की को अगवा करने की कोशिश की । बाहर के अधिकतर जिहादी आम मुसलमानों के यहां शरण ले रहे हैं इन्हें जिहाद की शिक्षा दे रहे हैं हिन्दुओं के विरूद्ध भड़का रहे हैं । ये सब तब हो रहा है जब हिमाचल में हिन्दू 95% से अधिक हैं । 


अगर हिन्दू साम्प्रदायिक होते जैसे सैकुलर गिरोह प्रचारित करता है तो आज तक यहां एक भी मुसलमान जिन्दा न बचता ।पर सच्चाई यह है कि आज तक एक भी मुसलमान को हिन्दुओं ने हाथ नहीं लगाया है फिर भी हिन्दू साम्रदायिक और जिस गिरोह के सहयोग से मुसलमानों ने कश्मीर से हिन्दुओं का सफाया कर दिया वो गिरोह और मुसलमान –शान्तिप्रय सैकुलर । 


हिमाचल के हिन्दुबहुल होने के बावजूद मुस्लिम जिहादियों द्वारा बार-बार किए जा रहे हमलों व मुसलमानों द्वारा किये जा रहे अतिक्रमण को हिन्दू कब तक सहन करेगा । एक वक्त तो ऐसा आयगा जब ये सब्र का बांध टूटेगा फिर क्या होगा...सब ठीक हो जाएगा !

Thursday, November 14, 2013

हिन्दू मंदिरों के संपत्ति की सरकारी लूट : एक तथ्य


हिन्दुओ के मंदिर और उनकी सम्पदाओ को नियंत्रित करने
के उद्देश से सन 1951 में एक कायदा बना –
“The Hindu Religious and Charitable Endowment Act 1951 “
इस कायदे के अंतर्गत राज्य
सरकारों को मंदिरों की मालमत्ता का पूर्ण नियंत्रण
प्राप्त है,जिसके अंतर्गत वे मंदिरों की जमीन ,धन
आदि मुल्यमान सामग्री को कभी भी कैसे भी बेच सकते
है ,और जैसे भी चाहे उसका उपयोग कर सकते है .
हिन्दुस्तान में हो रहे मंदिरों की संपत्ति के
सरकारी दुरुपयोग का रहस्योद्घाटन एक विदेशी लेखक
“स्टीफन नाप ” ने किया . उन्होंने इस विषय में एक पुस्तक
लिखी -”Crimes Against India and the Need to
Protect Ancient Vedic Tradition”
इस पुस्तक में उन्होंने अनेक धक्कादायक तथ्यों को उजागर
किया है .
हिन्दुस्तान में सदियों में अनेक धार्मिक राजाओ ने
हजारों मंदिरों का निर्माण किया , और श्रध्हलुओ ने इन
मंदिरों में यथाशक्ति दान देकर उन्हें संपन्न किया परन्तु
भारत की अनेक राज सरकारों ने श्रध्हलुओ की इस धन
का अर्थात मंदिरों की संपत्तियो का यथेच्छा शोषण
किया ,अनेक गैर हिंदू तत्वों के लिए इसका उपयोग किया .
इस घुसपैठी कानून के अंतर्गत श्रध्हलुओ
की संपत्ति का किस तरह खिलवाड़ हो रहा है
इसका विस्तृत वर्णन है -
मंदिर अधिकारिता अधिनियम के तहत आँध्रप्रदेश के
43000 मंदिरों के संपत्ति से केवल 18 % दान
मंदिरों को अपने खर्चो के लिए दिया गया और बचा हुआ
82 % कहा खर्च हुआ इसका कोई उल्लेख नहीं !
यहां तक कि विश्व प्रसिद्ध तिरूमाला तिरूपति मंदिर
भी बख्शा नहीं गया, हर साल दर्शनार्थियों के दान से
इस मंदिर में लगभग 1300 करोड रुपये आते है है जिसमे से
85 % सीधे राज्यसरकार के राजकोष में चले जाता है ,
क्या हिंदू दर्शनार्थी इसलिए इन मंदिरों में दान करते है
की उनका दान हिंदू-इतर तत्वों के काज करने में लगे?
स्टीफन एक और आरोप आंध्र प्रदेश सरकार पर करते है,
उनके अनुसार कमसे कम 10 मंदिरों को सरकारी आदेश पर
अपनी जमीन देनी पड़ी , …….गोल्फ के मैदानों को बनाने के
लिए !!!
स्टीफन नाप प्रश्न करते है “क्या हिन्दुस्तान में 10
मस्जिदों के साथ ऐसा होने की कल्पना की जा सकती है ?”
इसी प्रकार कर्णाटक में कुल 2 लाख मंदिरों से 79 करोड
रुपैय्या सरकार ने बटोरा जिसमे से केवल 7 करोड
रुपयों मंदिर कार्यकारिणियो को दिए गए .इसी दौरान
मदरसों और हज सब्सिडी के नाम पर 59 करोड खर्च हुआ
और चर्च जिर्नोध्हर के लिए 13 आख का अनुदान
दिया गया .
सरकार के इस कलुशीत कार्य पर टिपण्णी देते हुए स्टीफन
नाप लिखते है ” ये सब इसलिए घटित
होता रहा क्योंकि हिन्दुओ में इस के विरुद्ध खड़े रहने
की या आवाज उठाने की शक्ति /इच्छा नहीं थी “
इन तथ्यों को प्रकाशित करते हुए स्टीफन केरल के
गुरुवायुर मंदिर का उदहारण देते है ,
इस मंदिर के अनुदान से दूसरे 45 मंदिरों का जिर्निध्धर
करने की बात गुरुवायुर मंदिर कार्यकारिणी ने
रखी थी,जिसको ठुकराते हुए मंदिर
का सारा पैसा सरकारी प्रोजेक्ट पर खर्च किया गया !
इन सबसे ज्यादा कुकर्म ओरिसा सरकार के है जिसने
जगन्नाथ मंदिर की 7000 एकड़ जमीन बेचने निकाली है
जिस से सरकार को इतनी आमदनी होना संभव है की जिसके
उपयोग से वे अपने वित्तीय कुप्रबंधानो से हुए नुक्सान
को भर सके .
ये बरसो से अविरत होता आया है, इसका प्रकाशन न होने
की महत्वपूर्ण वजह है – “भारतीय
मिडिया की हिन्दुवीरोधी प्रवृत्ति”
भारतीय मिडिया (जिसमे अंग्रजीयात कूट कूट के भरी है )
इन तथ्यों को उजागर करने में किसी भी प्रकार
की रूचि नहीं रखती .अतएव ये सब
चलता रहता है …..अविरत ,बिना किसी रुकावट के !
इस धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रित देश में हिन्दुओ की इन
प्राचीन सम्पदाओ को दोनों हाथो से
लुटाया जा रहा है , क्योंकि राज्यसर्कारे हिन्दुओ
की अपने धर्म के प्रति उदासीनता को और उनकी अनंत
सहिष्णुता को अच्छी तरह जानती है …!!
परन्तु अब समय आ गया है की कोई हिंदू ,सरकार के इस के
लूटमार केविरुद्ध आवाज उठाये , जनता के धन
का (जो की उन्होंने इश्वर के कार्यों में दान किया है), इस
तरह से होता सरकारी दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार से
प्रश्न करे !
एक गैर-हिंदू विदेशी लेखक को हिन्दुओ के साथ
होता धार्मिक भ्रष्टाचार सहन नहीं हुआ ,और उसने इन
तथ्यों को उजागर किया सार्वजनिक तौर पर, परन्तु
लाखो हिंदू इस धार्मिक उत्पीड़नो को प्रतक्ष सहन करते
आ रहे है ….क्यों ?
…………..क्योंकि उनकी आत्मायें मर चुकी है !!

सावरकर - सूर्य नमस्कार !


सावरकर नाम है एक बहुआयामी व्यक्तित्ववाले आज के युग के मानवतावादी महर्षि का! एक ऐसे प्रखर सूर्य का जिसके प्रखर हिंदुत्व दर्शन के कारण अच्छे-अच्छों की आँखें चौधिया गई थी। परंतु, इसी कारण से उनके अन्य समाजोद्धारक विचार व आचार उपेक्षित ही रह गए। विशेष रुप से मूलतः भक्तिभावी स्वभाव के हम लोगों को आचरण पसंद नहीं। इसीलिए तो सावरकर का समाज-सुधार जो एक जमाने में गाया जाता था वह आज सुनने को भी नहीं मिलता।

वीर सावरकर का हिंदू-राष्ट्र कोई एकांगी, फुसफुसा अथवा अस्थायी आधार पर खडा किया हुआ नहीं है। हिंदू-राष्ट्र के प्रबल व प्रभावी निर्माण के लिए राज्यक्रांति के समान ही समाजक्रांति भी की जाना आवश्यक है। एक क्रांति के बिना दूसरी क्रांति घटित होना ही कठिन; घटित हुई भी तो टिकना तनिक भी संभव नहीं। हिंदू संगठन के आंदोलन की तत्त्वात्मक और कार्यात्मक योजना वीर सावरकर अंडमान से रिहा होने के पूर्व से ही आंक रहे थे। सन्‌ 1924 में वे कैद से छूटकर रत्नागिरी में स्थलबद्ध हुए। उस दिन से उन्होंने इस योजना की उसके इस दोहरे स्वरुप की कार्यवाही को करना प्रारंभ किया। तभी से वे प्रचार करने लगे और उनके कार्यक्रम स्थलबद्धता की चौखट में बैठ सकें ऐसे प्रत्यक्ष प्रयोग भी उन्होंने चालू किए। उन्होंने उनके अंगोपांगो का विशदीकरण करनेवाले अनेक स्वतंत्र ग्रंथ और श्रद्धानंद, केसरी, किर्लोस्कर आदि सामयिक पत्र-पत्रिकाओं में स्फुट लेख भी लिखे थे।

1924 में सशर्त रिहा होने के बाद पहले तीन साल यानी 1926 के अंत तक सावरकरजी ने अस्पृश्यता निवारण, स्वदेशी प्रचार और बलसंवर्धन के लिए व्यायामशालाओं का प्रसार इन तीन बातों पर मुख्यतः बल दिया। आगे पूरे महाराष्ट्र में उनके जिस भाषाशुद्धि के आंदोलन नेे खलबली मचा दी उस भाषाशुद्धि का कार्य भी इसी काल में शुरु हुआ था। इसके उदाहरण हैं ः 'हवामान"  को 'ऋतुमान", रत्नागिरी के 'नेटिव्ह जनरल लायब्ररी" का रुपांतर 'नगरवाचनालय" या 'नगर ग्रंथालय" में हुआ। इसी प्रकार से पाठशालाओं में 'हाजिर" के स्थान पर 'उपस्थित" की पुकार करना, आदि। किसी भी नई बात के आरंभकाल में जैसी हेठी, निंदा होती है उसी प्रकार की भाषाशुद्धि के मामले में भी घटित होने लगी। इसी काल में सावरकरजी ने विद्यार्थियों के लिए हिंदी की कक्षाएं चलाई। सावरकरजी को हिंदी ही राष्ट्रभाषा के रुप में अभिप्रेत थी। मगर वह हिंदी संस्कृतनिष्ठ होना चाहिए, ऐसा उनका आग्रह था। उन्होंने लिपिशुद्धि और भाषाशुद्धि मंडलों की स्थापना की, जातिभेदोच्छेदक संस्थानों को जन्म दिया। पहले भारतीय वायुवीर रत्नागिरी के कॅप्टन दत्रातय लक्षमण पटवर्धन तथा 'डी लॅकमन" की देखरेख में 'रायफल क्लब" की स्थापना की। सावरकरजी ने  समाजक्रांति को पूरक ऐसा एक 'अखिल हिंदू उपहार गृह" शुरु किया। उस उपहार गृह के संचालक श्री गजाननराव दामले थे। वहां चाय-चिवडा महार के हाथ से मिलता था। वहीं सावरकरजी अतिथियों से मिलते थे।

अस्पृश्योद्धार के साथ ही सावरकरजी का शुद्धिकरण का कार्य भी शुरु था। उनके द्वारा किया गया महत्वपूर्ण शुद्धिकरण था धाक्रस परिवार का। दस पंद्रह वर्ष पूर्व ईसाई बन चूके इस परिवारा को सावरकरजी ने शुद्धि समारोह कर फिर से हिंदू धर्म में लिया था। समाज में समरस किया इतना ही नहीं तो उनकी दो उपवर कन्याओं के विवाह योग्य ऐसे वरों से करा दिए। और एक लडकी के विवाह में तो श्री धाक्रस के आग्रह पर कन्यादान भी किया। सावरकरजी द्वारा प्रचारित बातों से अब समाज अभ्यस्त होने लगा था।  परंतु, इस पर संतुष्ट न रहते गतिमान रहना सावरकरजी के किसी भी आंदोलन का एक महत्वपूर्ण भाग होता था। इसलिए देवालय की 'सीढ़ी के बाद सभा मंडप आंदोलन" सावरकरजी ने शुरु किया। स्पृश्यास्पृश्यों के समिश्र मेले सभा मंडप में जाने पर किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं इस प्रकार का प्रचार शुरु किया। किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में अस्पृश्य माने गए बंधुओं को साथ लेकर वे मंदिर जाने लगे। इस आंदोलन को लेकर अनेक लोग उन्हें छोडकर जाने लगे। बस सुधारक ही बचे रह गए। सामान्य लोगों को अस्पृश्यों का देवालय प्रवेश उस काल में भयंकर भ्रष्टाचार लगा इसमें कोई आश्चर्य नही। सावरकरजी अपने किसी भी नए आंदोलन का उपक्रम सार्वजनिक गणेशोत्सव और रत्नागिरी के पुरातन श्री विट्ठल मंदिर से करते थे। गणेशोत्सव समिति सावरकरजी का व्यासपीठ था। अस्पृश्यता धर्मसम्मत होने के कारण उसका पालन किया जाना चाहिए ऐसा कहे जानेवालों के व्याख्यानों का आयोजन जानबूझकर सनातनी करते थे। तो, अस्पृश्यता निषेध के सुधारक। इस प्रकार की यह खींचतान लगभग दो साल चली।  इस कारण समाज ऊपर से नीचे तक हिल उठा।  अस्पृश्यता बाबद अनुकूल या प्रतिकूल चर्चाओं के बिना रत्नागिरी में अन्य विषय ही नहीं बचा था।

1928 में दशहरे के शुभ दिन, परधर्मियों को हम अपने घरों में जहां तक प्रवेश देते हैं वहां तक तो भी अस्पृश्यों को प्रवेश देने के लिए तैयार हिंदू नागरिकों के घरों में, अपने सवा सौ अनुयायियों और 8-10 अस्पृश्यों सहित सावरकरजी ने समारोहपूर्वक प्रवेश किया और उन सभी के नाम प्रकाशित किए गए। पाठशालाओं में भी अस्पृश्य समझे जानेवाले बच्चों को मिश्रित रुप से बैठाया जाए, उन्हें पाठशालाओं के बरामदों अथवा कक्षा में एक ओर न बैठाया जाए। यह बात सावरकरजी हिंदू संघटन की दृष्टि से अत्यंत ठोस और मूलगामी समझते थे। परंतु, सावरकरजी के इस आंदोलन को भी तीव्र विरोध का सामना करना पडा। कई पाठशालाओं में शिक्षकों की हडतालें हुई तो, कई गांवों में गांववासियों ने विरोध किया। कुछ स्थानों पर स्पृश्यों द्वारा दिए गए स्थान वापिस ले लिए गए। तो कुछ स्थानों पर अस्पृश्यों ने यदि अपने बच्चों को पाठशालाओं में भेजा तो बहिष्कार किया जाएगा की धमकियां दी गई।

देवालय प्रवेश के साथ ही सावरकरजी को समाज के पतन का कारण बनी 'बंदियों" को तोड डालना था और इसलिए पुराने देवालयों में अस्पृश्यों के प्रवेश आंदोलन के साथ ही जिस देवालय में अस्पृश्यों को सवर्ण हिंदुओं के समान प्रवेश और अन्य अधिकार होंगे ऐसा अखिल हिंदुओं के लिए श्री पतित पावन मंदिर का निर्माण सेठ श्री भागोजी कीर की सहायता से किया। 10 मार्च 1929 को मंदिर का शिलान्यास श्रीमत्‌ शंकराचार्य डॉ. कूर्तकोटी के करकमलों द्वारा हुआ। उपस्थित स्पृश्यास्पृश्यों के प्रचंड जनसमुदाय के सामने सावरकरजी ने इस देवालय के उद्देश्यों की रुपरेखा निम्नानुसार कथन की -

1). इस देवालय में शंख, चक्र, पद्म, गदाधारी भगवान श्रीविष्णू की देवी लक्ष्मी सहित स्थापना की जाएगी। 2). उस मूर्ति की पूजा करने का अधिकार जातिनिर्विशेष ढ़ंग से सभी हिंदुओं को समान रुप से रहेगा। 3). मगर, ऐसी पूजा करनेवाले को सर्वप्रथम देवालय के प्रांगण में स्नान कर व शुद्ध वस्त्र धारण करने के बाद में ही पूजा के लिए मंदिर के गर्भगृह में जाने का अधिकार होगा। 4). देवालय का पुजारी 'स्वधर्मक्षम" होना चाहिए, फिर वह किसी भी जाति का हो। इस प्रकार सभी हिंदुओं के लिए खुला रहनेवाला देवालय अखिल महाराष्ट्र तो क्या परंतु, अखिल भारत में भी दुर्लभ होने के कारण इस मंदिर को एक विशिष्टता प्राप्त हुई। इस समय  सावरकरजी ने अपने भाषण में कहा था ''अस्पृश्यों को प्रेम से स्पृश कर उनका अंगीकार करनेवाले दो ही शंकराचार्य हुए हैं। पहले, पीठ स्थापक आद्य शंकराचार्य काशी में स्नान कर वापिस आते समय मार्ग में अद्वैत तत्त्वज्ञानी अस्पृश्य को आलिंगन देनेवाले और दूसरे यह शंकराचार्य डॉ. कूर्तकोटी जो अखिल हिंदुओं के प्रतिनिधि के रुप में आए हुए पांडु विठु महार को हार और हाथ अपने गले में डालने देकर उस पांडोबा के साथ ही स्वयं भी कृतार्थ हुए। यह श्री पतित पावन मंदिर स्मृति है सनातनियों के विरोध की परवाह न करते अस्पृश्यता के कलंक को धो डालने के वीर सावरकर के क्रांतिकारी कार्य की।

श्री पतित पावन मंदिर के कारण सावरकरजी को बिना किसी अवरोध के सामाजिक क्रांति का कार्य करने के लिए स्वतंत्र व्यासपीठ प्राप्त हुआ। जब सनातनियों ने अस्पृश्यों को गणेशोत्सव के लिए विट्ठल मंदिर के सभामंडप में प्रवेश को नकारा तो, सावरकरजी ने सभासदत्व से त्यागपत्र देकर अखिल हिंदू गणेशोत्सव में भाग ले सकें ऐसा अखिल गणेशोत्सव श्री पतित पावन मंदिर में शुरु किया। इसी उत्सव में डेढ़ हजार स्त्रियों द्वारा भाग लिया हुआ हल्दी-कुंकु कार्यक्रम भी संपन्न हुआ। विशेष रुप से दर्ज करने लायक बात है पांच अस्पृश्य लडकियों द्वारा गायत्री मंत्र पठन की स्पर्धा में भाग लेना। शिवू भंगीने शास्त्रशुद्ध स्वरों में सैंकडों लोगों के सामने तीन बार गायत्री मंत्र का उच्चारण कर पुरस्कार जीता। सबसे महत्वपूर्ण बात थी सावरकरजी द्वारा 'हिंदुओं के जातिभेद" इस विषय पर हुए व्याख्यान। हिंदूजाति की वर्तमान दुर्बल, अव्यवस्थित स्थिति के लिए महत्वपूर्ण कारण है 'हिंदुओं के बीच का जातिभेद"। हिंदुओं की  शक्ति को बांझ कर डालनेवाली अधिकांश सभी दुष्ट रुढ़ियों का मूल इस जातिभेद में ही है, ऐसी उनकी दृढ़ धारणा थी। और इसीलिए जातिभेद के उच्छेदन का आंदोलन उन्होंने हाथ में लेना तय किया।

उन्होंने केसरी में 'जातिभेद के इष्टनिष्टत्व" इस शीर्षक तले लेखमाला लिखी और इस प्रश्न को महाराष्ट्र में गति दी। प्रचलित जातिभेद की अनिष्टता युवाओं के मानस पर अंकित होना चाहिए इसलिए उन्होंने रत्नागिरी में युवाओं का 'हिंदू मंडल" स्थापित कर उसमें जातिभेद के अनिष्टत्व को सिद्ध करने के लिए चर्चा करते थे। उनका कहना था जातिभेद सप्तपाद प्राणी है। वे पांव हैं - वेदोक्तबंदी, सिंधुबंदी, शुुद्धिबंदी, स्पर्शबंदी, रोटीबंदी व बेटीबंदी। इनमें से मुख्यतः तीन पांव स्पर्शबंदी, रोटीबंदी और बेटीबंदी तोडी कि जातिभेद समाप्त हुआ ही समझ लीजिए। इसके लिए 'जातिभेदोच्छेदनार्थ अखिल हिंदू सहभोजन करिष्ये" इस प्रकार का संकल्प कर सहभोजन होना चाहिए। 16 सितंबर 1930 को पहला सहभोजन रत्नागिरी में हुआ। इस समारोह के कारण रत्नागिरी ही नहीं तो पूरे महाराष्ट्र में खलबली मच गई। रत्नागिरी में पहले से ही चल रहे सावरकरजी के भाषाशुद्धि, लिपिशुद्धि, अस्पृश्यता निवारण, शुद्धिकरण, पाठशालाओं में अस्पृश्य बच्चों को मिश्रित ढ़ंग से बैठाना, 'अखिल हिंदू उपहारगृह की स्थापना", अस्पृश्यों का देवालय प्रवेश, अस्पृश्यों के साथ हिंदू नागरिकों के घरों में प्रवेश आदि अभियानों के बाद अब जातिभेदोच्छेदनार्थ सहभोजन ने आग में घी डालने का काम किया। पहले से ही उन्हें रुढ़ीप्रिय समाज पाखण्डी, 'सबगोलंकारी" अर्थात्‌ छूत-छात न माननेवाला कहता था। पहले कुछ अनुयायी मंदिरों में अस्पृश्यों के साथ प्रवेश प्रकरण के कारण छोड गए थे अब उसमें और बढ़ोत्री हुई। तथापि, 'वरंजनहितं ध्येयं न केवला न जनस्तुती" इस ध्येय वाक्य से प्रेरित सावरकरजी ने चिंता न की।
जात्युच्छेदक सहभोजनों और सहभोजकों का सनातनियों द्वारा बहिष्कार की धूम मची हुई थी कि जिस देवालय में अस्पृश्यों को सवर्ण हिंदुओं के समान ही प्रवेश और अन्य सभी प्रकार के अधिकार हों ऐसे 'अखिल हिंदुओं के लिए श्रीपतितपावन मंदिर" जो सेठ भागोजी कीर की सहायता से निर्मित किया गया था के उद्‌घाटन के समय श्री भागोजी कीर जाति से भंडारी होने के कारण वेदोक्त पद्धति से हम धार्मिक विधि नहीं करेंगे, ऐसा शास्त्री-पंडितों ने कहा, तब सावरकरजी एक ओर तथा शास्त्री-पंडित दूसरी ओर इस पद्धति से दो दिन तक शास्त्रार्थ चला। सावरकरजी का धर्मग्रंथों का अध्ययन कितना प्रबल है इसका प्रत्यय सबको इस समय हुआ। शंकराचार्य डॉ. कूर्तकोटी ने भागोजी कीर के कर कमलों द्वारा वेदोक्त विधि से धार्मिक विधि होने में कोई आपत्ति नहीं ऐसा निर्णय दिया। फिर भी शास्त्री-पंडितों को वह मान्य नहीं हुआ। श्रद्धालु प्रकृति के सेठजी ने कहा पुराणोक्त तो पुराणोक्त परंतु, मूर्ति की प्रतिष्ठा समय पर हो। सावरकरजी तत्काल बोले प्रत्येक हिंदू को वेदोक्त अधिकार है। इस सिद्धांत का त्याग करना हो तो, सबसे पहले मेरा त्याग करो। परंतु, यदि सिद्धांत का त्याग नहीं करनेवाले हो तो पूर्वास्पृश्यों का जो हजारों का समुदाय आज आया हुआ है उन हजारों हिंदुओं के हाथों से देवमूर्ति उठाकर जयजयकार कर हम उस मूर्ति की स्थापना करेंगे। यही हमारी विधि होगी। 'हिंदू धर्म की जय"  का हजारों कंठों से निकलनेवाला जयघोष ही हमारा वेदघोष होगा और 'भावेहि विद्यते देवो" हमारा शास्त्राधार।
अंत में मसूरकर महाराज के आश्रम के वे.शा.सं. विष्णू शास्त्री मोडक द्वारा महाराज की आज्ञानुसार कीर सेठजी के कर कमलों द्वारा वेदोक्त विधि से देवप्रतिष्ठादिक सारे धर्म विधि भलीभांति पूर्ण किए गए। और दिनांक 22 फरवरी 1931 को श्री पतितपावन की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा श्री शंकराचार्य के कर कमलों द्वारा 'हिंदू धर्म की जय" गगनभेदी नारों के साथ की गई। इस समारोह में पूणे के श्री राजभोग द्वारा शंकराचार्यजी की पाद्यपूजा की गई। दूसरे दिन दि. 23 को अन्नसंतर्पण के कार्यक्रम में 'सावरकरजी का पाखंडी सहभोजन नहीं होना चाहिए" का आग्रह अनेक सनातनियों के साथ ही श्री मसूरकर महाराज, संत पाचलेगांवकर महाराज और स्वयं डॉ. कूर्तकोटी ने भी किया। सहभोजन, जातिउच्छेदन इस प्रकार के आंदोलन आततायी और पांखडी हैं। सावरकरजी के इन आंदोलनो को हमारी बिल्कूल भी सहमति नहीं है, ऐसा वे जाहिर रुप से कहने लगे।
परंतु, इस अन्नसंतर्पण का जात्युच्छेदक सहभोजन कार्यक्रम सावरकरजी द्वारा स्थगित किया जाना संभव ही नहीं था। इस समारोह में दूर-दूर से आए हुए लोगों को रत्नागिरी में की गई सामाजिक क्रांति का प्रदर्शन दिखाने का अवसर गंवाना सावरकरजी जैसे आग्रही प्रचारक को मान्य होनेवाला नहीं था। उन्होंने कीर सेठजी के पास न्याय्य मांग की ''अन्न संतर्पण के भोजन की इच्छा रखनेवालों की स्वतंत्र पंगत रखने की व्यवस्था करें, जो उस पंगत में बैठना चाहें बैंठे। सनातनियों की जातिगत पंगत का हम सहभोजक विरोध नहीं करेंगे। वे भी हमारी पंगत का विरोध ना करें। उनकी प्रामाणिकता को हम मान्य करते हैं। वे हमारी प्रामाणिकता को मान्य करें।"" सावरकरजी के जातिभेदोच्छेदक सहभोजन की परंपरा आगे चलकर हमारे इंदौर में भी चटनी-रोटी सहभोजन के रुप में पहुंची।

22 फरवरी को ही मंदिर के सभामंडप में दोपहर को मुंबई के अस्पृश्यता निवारक परिषद का छठा अधिवेशन हुआ। अध्यक्ष के रुप में सावरकरजी को चुना गया। सुभेदार घाटगे (पुणे) ने तो 'हमारे सच्चे शंकराचार्य" की उपाधि सावरकरजी को प्रदान की। स्त्रियां पुरुषों की अपेक्षा अधिक कर्मठ रुढ़ीग्रस्त होती हैं। इस कारण जात्युच्छेदन के आंदोलन ने स्त्रियों में जड पकडी तो वह अधिक शाश्वत स्वरुप का होने का संभावना थी। इसके लिए उनमें भी खुल्लमखुल्ला रोटीबंदी तोडने की प्रवृत्ति शुरु करना आवश्यक था। परंतु, यह काम सरल नहीं था। इसके लिए बहुत मेहनत करना पडी। वर्ष-दो वर्ष के प्रयत्नों के बाद तीस-पैतीस सुविद्य स्त्रियां और बीस-पच्चीस अस्पृश्य स्त्रियों का पहला सहभोजन 21 सितंबर को हुआ। इसी मंदिर में सावरकरजी अस्पृश्यों को यज्ञोपवित भी बांटते थे।

1933 में शिवरात्री पर रत्नागिरी में जन्मजात अस्पृश्यता का मृत्युदिवस मनाना रत्नागिरी की हिंदूसभा ने तय किया। उस 'दिन" के लिए पूणे के डिप्रेस्ड क्लास मिशन के कर्मवीर शिंदे और दलित वर्ग के नेता पा. ना. राजभोग आए थे। समारोह के अध्यक्षीय भाषण में कर्मवीर शिंदे, जिन्होंने अस्पृश्यता निवारण के कार्य में अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया था, ने कहा ''रत्नागिरी के सामाजिक परिवर्तनों को मैंने सूक्ष्मता से देखा है। इस पर से मैं निःशंक रुप से कह सकता हूं कि, यहां घटित हो रही सामाजिक क्रांति अभूतपूर्व है, सामाजिक सुधार का कार्य मैंने जीवन भर किया है। वह इतना कठिन और क्लिष्ट है कि, मैं भी बीच-बीच में निरुत्साहित हो जाता हूं। परंतु, यह क्लिष्ट काम मात्र सात वर्षों में रत्नागिरी जैसे सनातनी नगर में सावरकरजी ने कर दिखाया। यह रत्नागिरी केवल अस्पृश्यता का उच्चाटन कर ही रुकी नहीं अपितु जन्मजात जातिभेद के उच्चाटन करने के लिए कटिबद्ध हुई। आप लोगों को अस्पृश्यों के साथ सहभोजन, सहपूजन आदि सारे सामाजिक व्यवहार प्रकटरुप से करते हुए मैंने देखा है। इससे मैं इतनी प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूं कि, यह दिन देखने के लिए मैं जीवित रहा बडा अच्छा रहा।  

वीर सावरकर की यह क्रांति आगे खंडित हो गई। परिणामस्वरुप 1927 में महाड में डॉ. आंबेडकर द्वारा की गई घोषणा 1956 के दशहरे पर अमल में लाई गई। परंतु, उसके पूर्व ''1938 में पूना ओ.टी.सी में एक दिन डॉ. आंबेडकर पधारे। उन्होंने डॉक्टरजी से पूछा, 'इन स्वयंसेवकों में कोई महार जाति के हैं क्या?" डाक्टरजी ने कहा, 'होंगे लेकिन हम उनकी जाति-वार याददाश्त नहीं रखते, इच्छा हो तो कमरे में चलकर जानकारी ले सकते हैं।" वे बोले, 'हॉं, मैं जानकारी लेना चाहता हूँ।" इस पर दोनो कमरे में गए और स्वयंसेवकों से पूछा, 'यहां कोई महार जाति के कोई हैं क्या?" कुल करीब 200 स्वयंसेवकों में से 8 या 9 स्वयंसेवक महार जाति के निकले। उनसे आंबेडकरजी ने पूछा, 'क्या आप अन्य स्वयंसेवकों के साथ ही खाना खाते हैं?" उत्तर मिला, 'जी हॉं," और सबने मिलकर बतलाया कि वहॉं वे कोई भेदभाव महसूस नहीं करते।"

आंबेडकर आश्चर्य-चकित हो गए और बोले, 'मैंने ऐसा दृश्य अपने जीवन भर कहीं नहीं देखा। परंतु डॉक्टर! आपके इस मार्ग से पूरी महार जाति का उद्धार करने में सैंकडों साल लग जाएंगे। मुझे उतना 'धैर्य" नहीं है। इनका उद्धार तुरंत हो, ऐसी मेरी इच्छा है।" डाक्टरजी हॅंसकर बोले, 'आपकी इच्छा ठीक है, पर मैं कहूँगा, 'हेस्ट मेक्स वेस्ट" और इतना कहकर डॉक्टरजी आंबेडकरजी को अपने साथ अपने निवास-स्थान पर ले चले गए।""(राष्ट्रधर्म मार्च 1989पृ.102 युगान्तर विशेषांक) 24 मई 1956 बुद्धजयंती पर नरे पार्क में डॉ. आंबेडकर ने निर्वाण की घोषणा की कि 14 अक्टूबर 1956 विजयादशमी को अनुयायियों सहित मैं बौद्धधर्म ग्रहण करुंगा। डॉ. आंबेडकर को इस विचार से परावृत्त करनेवाली एक भी हिंदू शक्ति नहीं थी ऐसा ही कहना पडेगा।

''डॉक्टर साहब के धर्मांतर करने के निश्चय का जब श्री गुरुजी को पता चला तब उन्होंने अविलम्ब ठेंगडीजी को डॉक्टर साहब के पास चर्चा करने हेतु भेज दिया। 'डॉक्टर साहब, सुना है कि आप हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले हैं?" 'हॉं,मैंने पक्का निर्णय किया है।" 'परंतु आप जो विचार बताते हैं वही सब हममें से कुछ युवक प्रत्यक्ष आचरण में अनेक वर्षों से ला रहे हैं।" 'आप युवक याने आर.एस.एस. ही है?"  'जी हॉं, हममें कुछ सवर्ण भी हैं, कुछ दलित वर्ग के भी हैं। जो सवर्ण हममें हैं वे ऐसा विचार करते हैं कि भूतकाल में हमसे जो कुछ पाप हुआ सो हो गया है उसका प्रायश्चित करने को हम तैयार हैं। हमको सब हिंदू मात्र का संगठन करना है।" 'बहुत ही अच्छा है परंतु इस पर मैंने कुछ सोचा ही नहीं ऐसी तुम्हारी धारण है क्या?" 'आपने इस पर सोचा नहीं होगा यह कैसे हो सकता है डॉक्टर साहब!" ठेंगडीजी ने कहा।

'तो फिर मेरे प्रश्न का उत्तर दो।" 'पूछिए आपका प्रश्न डॉक्टर साहब!" 'तुम्हारे आर.एस.एस. का कार्य कब प्रारंभ हुआ।" 'सन 1925 में।" 'याने कार्य प्रारंभ हुए कितने वर्ष हो गए?" 'साधारणतः 27-28 वर्ष।" 'देशभर में आर.एस.एस. वालों की कुल  कितनी संख्या है?" 'मुझे तो इसकी कल्पना नहीं है।" 'अच्छा! तो मेरे अनुमान से देशभर में 26-27 लाख स्वयंसेवक होंगे।" 'हो सकते हैं।" 'तो तुम ही बताओ कि 26-27 लाख सवर्ण और दलित लोगों को आपकी संस्था में लाने में अगर आपको 27-28 वर्ष लगे हैं तो पूरे दलित वर्ग को संघ में लाने के लिए कितने वर्ष लगेंगे?" 'परंतु... .. डॉक्टर साहब... 'बीच में मत बोलो। तुम क्या कहने वाले हो वह सब मुझे पता है। तुम जो geometricl progression बतानेवाले हो उसकी भी कुछ मर्यादा है। बकरी कितनी भी बडी हो जाए तो भी बैल नहीं बन सकती। मुझे अपने ही जीवन में इस समस्या का हल करना है। इसको निश्चित दिशा देनी है।""  ठेंगडी मौन रह गए।" (स्वदेश दीपावली विशेषांक 1973 पृ.25) और प्रत्यक्ष नागपूर में ही दशहरे के विजयदिवस पर तथाकथित अस्पृश्यों का बडा भाग हिंदूधर्म समाज से अलग हो गया।

लव जिहाद

आकर्षण; स्त्री-पुरुष, युवा लडका-लडकी के मध्य का आकर्षण, इनका एक-दूसरे के प्यार में पडना, प्यार परवान चढ़ना, इसमें कुछ भी नया नहीं है, की कथाएं-प्रसंग प्राचीनकाल से ही विद्यमान है और कई प्रेम कथाओं-प्रसंगों ने तो जनमानस में अपना एक अलग स्थान ही बना लिया है। यह विपरीत लिंग के प्रति का आकर्षण है जो प्रकृत्ति प्रदत्त है। इसमें कुछ भी अस्वभाविक नहीं है और जब तक स्त्री-पुरुष हैं तब तक इस प्रकार के प्रेम-प्रसंग घटित होते ही रहेंगे केवल पात्र बदलते रहेंगे और कोई इन्हें रोक नहीं सकता। आज आधुनिकीकरण-उदारीकरण के दौर में जब शिक्षा, नौकरी-व्यवसाय, जीवन के हर क्षेत्र में स्त्री-पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं, उनमें निकटता के अवसर भी बडी तेजी से बढ़ रहे हैं ऐसे माहौल में अनेकानेक प्रेमकथाएं-प्रसंग जन्म लेंगे ही, सामने आएंगे ही। परंतु ये प्रेम-प्रसंग तब गंभीर रुप धारण कर लेते हैं जब स्त्री-पुरुष या लडका-लडकी भिन्न धर्मीय होते हैं। हमारा हिन्दू समाज इस दृष्टि से मुस्लिम समाज की बनिस्बत अधिक सहिष्णु-उदार विचारों वाला हैं। जितनी व्यक्तिगत-सामाजिक, वैचारिक स्वतंत्रता, जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के अवसर हम अपनी लडकियों को देते हैं उतनी मुस्लिम समाज अपनी लडकियों को नहीं देता। उनकी लडकियों को दी जानेवाली सीख, परिवेश, परवरिश निश्चय ही हमारी बनिस्बत अनुदार है, संकुचित है।

उदाहरणार्थ यदि कोई मुस्लिम लडकी हिंदू लडके से प्रेम विवाह कर ले तो लडके का परिवार उसके आयशा नामके रहने को बडी सहजता से स्वीकार लेगा और बडे गर्व से कहेगा कि हमें उसके मुस्लिम धर्म के पालन पर कोई एतराज नहीं क्योंकि, हमारी मान्यता ही यह है कि सभी धर्म सत्य की ओर ले जाते हैं। हम उसे पांच वक्त की नमाज पढ़ने की की अनुमति भी देते हैं। यह बात अलग है कि वह नमाज हमारे-अपने घर में ही पढ़ती है क्योंकि उसे मस्जिद में नमाज पढ़ने की अनुमति मिल नहीं सकती। उसकी होनेवाली संतति का मुस्लिम नाम यदि वह रखे तो वह भी हिंदू सहर्ष स्वीकार लेता है और इसके भी उदाहरण दिए जा सकते हैं, मौजूद हैं। इसके विपरीत, अगर कोई हिंदू लडकी किसी मुस्लिम लडके से विवाह कर ले तो उसे कलमा पढ़ना ही पढ़ेगा, इस्लाम का स्वीकार करना ही पडेगा अन्यथा वह विवाह इस्लाम की दृष्टि से जायज नहीं होगा और ऐसी मॉंओं से होनेवाली संतानों के नाम भी अमान-अयाज ही रखे जाते हैं। इसी कारण से तो अभी दो-ढ़ाई सौ वर्षों पूर्व अफगानिस्तान की हिंदू स्त्रियों-लडकियों की जो संतानें हुई उन्हें उनके हिंदू रक्त के होने का कोई गुमान तक नहीं। क्योंकि, उनकी हिंदू मॉंएं अफगानिस्तान की गिरी कंदराओं, पहाडी दर्रों में निकाह के बाद कहां गायब होती चली गई इसका कुछ अता-पता भी नहीं मिलता।

और इस प्रकार के जो अंतर-धर्मीय हिंदू-मुस्लिम विवाह हो रहे हैं उनमें भी लडकियों का जो पलायन हो रहा है वह भी एकतर्फा ही है। जिस गति से हिंदू लडकियों का पलायन मुस्लिम लडकों से प्रेम पश्चात निकाह द्वारा हो रहा है उसका एक अल्प सा प्रतिशत भी दूसरी ओर से हो रहा है ऐसा दूर-दूर तक नजर नहीं आता यही सबसे बडी चिंता का विषय है। क्योंकि, इससे सामाजिक संतुलन बिगडता है, सामाजिक समस्याएं पैदा होती हैं; असंतोष पनपता है, खीज उठती है जो कभी-कभी कानून-व्यवस्था का रुप धारण कर लेती है। यदि पलायन की हुई लडकी मुस्लिम हुई और लडका हिंदू हुआ तो मुस्लिम समुदाय अत्यंत तीव्र प्रतिक्रिया कर उठता है और लडकी या लडका या दोनो को ही अधिकांश मामलों में जान से मार डालता है। जबकि ऐसी अत्यंत तीव्र हिंसक प्रतिक्रिया जिसमें लडका या लडकी की हत्या कर दी जाए हिंदू समाज द्वारा बहुत कम ही व्यक्त की जाती है। इसीलिए इस समस्या पर बोलना, लिखना, प्रतिक्रिया व्यक्त करना आवश्यक हो जाता है।

यह एक बडी गंभीर-विचारणीय सामाजिक समस्या है जो दिनो-दिन बढ़ती ही जा रही है। इसकी गंभीरता इसलिए भी अधिक है क्योंकि, मुस्लिम समुदाय ने इस धर्मांतरण-मतातंरण का जरिया बना रखा है और इसके पीछे उनकी धार्मिक शिक्षा-सीख ही जिम्मेदार है। कुरान की 60वीं सूरह की 10वीं आयत में आज्ञा है ''ऐ ईमानवालों! जब तुम्हारे पास ईमानवाली औरतें हिजरत (पलायन) कर आवें तो वह औरतें काफिरों (गैरमुस्लिमों) को हलाल नहीं और न काफिर उन्हें जायज हैं और तुम पर पाप नहीं कि उन औरतों से निकाह (ब्याह) करो।"" अर्थात्‌ हाथ आई हुई औरत कोई भी हो उसे वापिस मत करो, जाने मत दो। और इसका उल्टा जब कोई मुस्लिम लडकी हाथ से निकल जाए अर्थात्‌ प्रेमविवाह कर किसी गैरमुस्लिम के साथ चली जाए तो कुरान की 60वीं सूरह की 11वीं आयत में आज्ञा है ''और अगर तुम्हारी औरतों में से कोई तुम्हारे हाथ से निकल कर काफिरों के साथ चली जावे फिर तुम उन (काफिरों) से जंग करो।""

मुस्लिमों द्वारा प्रेमविवाह के द्वारा धर्मांतरण की गंभीर-विचारणीय समस्या यह कोई भारत या केवल हिंदुओं तक की सीमित समस्या नहीं है इसने अंतर-राष्ट्रीय रुप ले रखा है। हमारे अलावा यूरोप और अमेरिका तक के लोग-ईसाईधर्मीय भी इसके शिकार हैं। इस संबंध में समाचार-लेख भी छप चूके हैं। बेल्जियम मूल के ईसाई पादरी कॉनरॉड एल्स्ट ने 3 वर्ष पूर्व मुंबई से प्रकाशित होनेवाले साप्ताहिक विवेक के 12-11-06 के अपने एक लेख 'मुस्लिम संख्या वृद्धि के लिए काफिर युवतियों का उपयोग" में लिखा हैं ''गैर-मुस्लिम युवतियों को बरगलाकर उनका उपयोग अपनी संख्यावृद्धि के अभियान के लिए खुल्लमखुल्ला करना और यह करते समय दुर्भागी काफिरों की खिल्ली उडाना यह संख्या वृद्धि के मुस्लिम युद्धतंत्र का अत्यंत वेदनादायी पहलू है। बांग्लादेश और भारत के मुस्लिम बहुल प्रदेशों में बेधडक युवतियों को भगाकर यह योजना अमल में लाई जाती है अथवा उनके परिजनों को धमकाकर ऐसी युवतियों का मुस्लिम युवकों के साथ निकाह कराया जाता है। पश्चिमी देशों में और पश्चिमी रुजहानवाले भारतीय समाज में सर्वसाधारणतया यह प्रेम से घटित करवाने के प्रयत्न चलते हैं। परंतु, अगर मुस्लिम युवती ने गैर-मुस्लिम युवक के साथ मित्रता की तो फिर उसके परिवार पर दबाव लाकर अथवा उस युवक को दहशत दिखाकर, आतंकित कर  तो कभी-कभी दोनो ही प्रकार से उन्हें परावृत्त करने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी जाती। इसके विपरीत यानी गैर-मुस्लिम युवती ने मुस्लिम युवक के साथ  संबंध बढ़ाए तो दूसरे पक्ष की ओर से ऐसा कुछ घटित होने की संभावना कम होने के कारण समग्र परिणाम गैर-मुस्लिम युवतियों का सतत प्रवाह मुस्लिम परिवारों की ओर बहता रहता है।""

परंतु, अब इस गंभीर-विचारणीय समस्या ने जो नया अत्यंत विकृत-घातक रुप इख्तियार कर लिया है। जिसका केरल-कर्नाटक के हाईकोर्ट तक संज्ञान ले चूके हैं और सरकारों को जांच के आदेश दे चूके हैं और कर्नाटक सरकार ने तो इसकी गंभीरता को जान सी.आई.डी. जांच के आदेश भी जारी कर दिए हैं। वह है 'लव-जिहाद", 'रोमिओ-जिहाद"। वैसे कुछ समय पूर्व उत्तर-भारत में इस संबंध में कुछ समाचार छपे थे। परंतु, उस समय किसीने उसे गंभीरता से नहीं लिया और बात आई-गई हो गई। जैसाकि हमेशा से ही होता है उसी प्रकार से प्रारंभ में सरकारें सुस्त और समाज सोया पडा रहता है और संबंधित प्रतिनिधि संस्थाएं भी निष्क्रिय सी ही बनी रहती है वैसा ही कुछ इस 'लव जिहाद" के मामले में भी हुआ। परंतु, अब जब यह 'लव जिहाद" अपने भयंकर-विकृत रुप में दक्षिण भारत में सामने आया तो सरकारों ने चौकन्ना होकर जांच आरंभ कर दी है और 14-10-09 के 'टाइम्स ऑफ इंडिया" के अनुसार प्रभावित हिंदू-ईसाई समाज की प्रतिनिधि संस्थाओं के रुप में 'विहिप" और 'चर्च" भी मुकाबले के लिए एकजुट हो रहे हैं।

पांचजन्य में छपे मुजफ्फर हुसैन के लेख 25-10-09 के अनुसार संक्षेप में 'लव जिहाद द्वारा जिहादी मुस्लिम युवक कॉलेज के प्रथमवर्ष में शिक्षा लेनेवाली  लडकियों को बहला-फुसलाकर अपनी और आकर्षित कर, प्रेमजाल में फंसाकर पहले तो उनसे निकाह पढ़ते हैं। कभी-कभी बजाए निकाह पढ़ने के उन्हें सीधे आतंकवादियों के हवाले कर दिया जाता है। तो, कभी केरल के तट पर तैयार खडी नौकाओं में उन्हें बिठलाकर जहाजों पर ले जाकर मध्यपूर्व के देशों में भेज दिया जाता है। कहने की बात नहीं कि इसके लिए धन का उपयोग किया जाता है, लडकियों को आकर्षित करने के लिए महंगे उपहार मोबाईल, वाहन, कपडों के रुप में तो, मुस्लिम युवकों को प्रति लडकी एक लाख रुपये। अब जांच का विषय यह है कि उक्त षड़यंत्र कौन संचालित कर रहा है? और इसके लिए धन कहां से आता है? केरल में पिछले छः माह में करीब 4000 युवतियों को इस तरह से फंसाने, उन्हें मतांतरित करने और फिर आतंकवादी संगठनों को सौंप देने के उदाहरण मिले हैं।"

'इसके लिए इंटरनेट को भी माध्यम बनाया जाता है। मुस्लिम युवक सबसे पहले इंटरनेट के जरिए सुंदर और इज्जतदार लडकियों की जानकारी लेकर उनसे चेटिंग करते हैं फिर लडकी के आकर्षित होने पर इस्लाम कितना अच्छा है, आधुनिक मजहब है आदि बातें उसके दिमाग में भरकर प्रभाव में लेते हैं। इस प्रकार से इस्लाम और युवक दोनो से ही आकर्षित होकर जब युवती रोमियो से मेलजोल बढ़ाती है और अंत में ज्यों ही लडकी निकाह के लिए उतावली हो जाती है बस तभी उसे किसी आतंकवादी सरगना को सौंपकर मतांतरित कर मुसलमान बना दिया जाता है। कई बार उनका निकाह भी कर दिया जाता है। परंतु, अंततः उसका ठिकाना आतंकवादियों का अड्डा ही है। जहां उसे आतंकवादी बनाकर किसी आत्मघाती बम के रुप में उसका इस्तेमाल  कर लिया जाता है। आतंकवादियों का कहना है कि उनका जाल पूरे भारत में बिछा है। भारत में अनेक विदेशी आतंकवादी संगठन अपना आधार बनाने के लिए वर्षों से काम कर रहे हैं। स्थानीय लोग मिल जाते हैं तो उन पर खर्च कम करना पडता है और स्थानीय भाषा-संस्कृति से परिचित होने के कारण उनका काम भी आसान हो जाता है।"

अब सवाल यह उठता है कि चर्चित 'लव जिहाद" में 'लव" और 'जिहाद" में कैसा संबंध? क्योंकि, जिहाद मतलब तो जंग-युद्ध और मरने-मारने का प्यार-मोहब्बत से क्या-कैसा संबंध हो सकता है। लेकिन जिहाद की जो व्याख्या मुस्लिम विद्वान करते हैं उसके अनुसार जिहाद मतलब ''किसी ध्येय की सिद्धी के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति लगा देने और जान-तोड कोशिश करने को अरबी में 'जिहाद" कहते हैं। जिहाद केवल युद्ध करने का नाम नहीं है। जिहाद का अर्थ इससे अधिक विस्तृत और व्यापक है। जिहाद में सारी दौड-धूप और चेष्टाएं केवल अल्लाह की प्रसन्नता और उसके उतारे हुए दीन (इस्लाम) के समर्थन और स्थापना के लिए होगी।""(हदीस सौरभ-पृ. 568 वैसे ही कुरआन मजीद पृ.1231) और 'लव जिहाद" में ध्येय है किसी भी तरीके से प्यार के नाम पर गैर-मुस्लिम लडकी को पटाकर, प्रेम का नाटक रचकर इस्लाम में मतांतरित करना।क्योंकि अल्लाह की प्रसन्नता, इच्छापूर्ति के लिए आवश्यक है कि इस्लाम वृद्धिंगत हो, सर्वत्र इस्लाम की स्थापना हो। अल्लाह की इच्छा कुरान की सूर 'बकर" की आयत 193 में इस प्रकार से आई हुई है ''एक अल्लाह ही का दीन (इस्लाम) हो जाए""। और इसके लिए संपूर्ण शक्ति लगा देना, दौडधूप करना, धन खर्च करना अपनी वाणी, लेखनी आदि से प्रयत्नशील रहना हर मुस्लिम का आज्ञापित कर्तव्य है और जिहाद इसी के लिए है। और इसीको मद्देनजर रखकर 'लव जिहाद" की मुहिम चलाई जा रही है। क्योंकि, इस्लाम की फितरत (प्रकृति, स्वभाव) गलबा (प्रभुत्व) है। जिसको हासिल करने के एक मार्ग के रुप में 'लव जिहाद" को आतंकवादी संगठनों ने अपनाया है। क्योंकि, इस एक माध्यम से ही वे कई लाभ एक साथ उठा रहे हैं। एक, गैर-मुस्लिम लडकी को धर्मांतरित कर फिर उससे तीन-चार बच्चे पैदा करवाकर अपना यानी मुसलमानों का, इस्लाम का संख्या बल बढ़ाने के साथ मतांतरण का सवाब (पुण्य) कमाना, दूसरा, इन्हीं लडकियों के माध्यम से अन्य लडकियों को इसी जाल में फंसाने के काम में लाना, इसके भी उदाहरण मौजूद हैं। तीसरा, इन लडकियों को वे अपनी कामतृप्ति के लिए भी उपयोग में ले लेते हैं। और अंत में कभी-कभी आत्मघाती मानव बम बनने के लिए भी बाध्य कर देते हैं।

Monday, November 11, 2013

मुस्लिमो को अपनी दशा सुधारने के लिए"आरक्षण" की नहीं "नसबंदी" की जरूरत है !

मुस्लिमो को अपनी दशा सुधारने के
लिए"आरक्षण"
की नहीं "नसबंदी" की जरूरत है !
-भारत मे हिन्दू जनसंख्या 84% है, फिर भी
मुसलमान दिन मे 5 बार लाउडस्पीकर पर यह
कहते है कि
अललाह के सिवा कोई ईश्वर नही है !!!
-सँविधान की धारा 30(A) के तहत
विद्दालयो मे गीता रामायण
पढाना प्रतिबँधित है ,
मदरसो मे कुरान और ईसाईयो को बाइबिल
पढाने की छूट ||
हिन्दू मँदिरो और तीर्थ स्थानो के
चढावो पर 70% सरकार का हक,
मस्जिदो और मजारो पर चढावे का पूरा हक
उनका : साथ ही साथ सरकारी अनुदान||
बाबा अमरनाथ की यात्रा पर सरकार
को टैक्स, लेकिन हज यात्रा पर सब्सिडी !!
ये है धर्म-निरपेक्षता। अपने भारत में हिन्दू
धर्म के अपमान को धर्म-निरपेक्षता
समझा जाता है ।
औरब के लुटेरो की नाजायेज
औलादों को सम्मान दिया जाता है उनके
लिए एक अलग कानून है ।

हिन्दुओ के पास अभी तक केन्द्रीय स्तर पर राजनीतिक शक्ति का अभाव रहा है

हिन्दुओ का अपने ही देश में अपमान होने का एक कारण यह है की हिन्दुओ के पास अभी तक केन्द्रीय स्तर पर राजनीतिक शक्ति का अभाव रहा है, जहाँ भी हिन्दुओ को राज्य स्तर पर हिन्दुत्ववादी राजनैतिक शक्ति का सहयोग मिला वहां हिन्दुओ ने दिखा दिया की हिन्दू कभी कमजोर नहीं रहा और ना ही हिन्दुओ की तलवार पर कभी जंग लगती है...
लेकिन वर्तमान में राजनैतिक शक्ति का कितना अधिक महत्त्व है, यह सभी जानते है...
अब तक हिन्दू इसी कमी के कारण अपने को असहाय अनुभव कर रहे थे...
अब एक वातावरण बन रहा है जिसका लाभ अगर हिन्दू ना ले पाया तो शायद भावी इतिहास हमें कभी क्षमा नहीं करेगा...
जय श्री राम...

बॉलीवुड फैला रहा है लव जिहाद


बॉलीवुड पर अब पाकिस्तान के ISI और
सऊदी अरब के इस्लामिक जिहादियों का नियंत्रण
बढ़ गया है । आप बीस साल पहले और आज के
बॉलीवुड में जमींन- आसमान का फर्क देख सकते हैं।
जहाँ बीस वर्ष पहले ये 5% से भी कम थे वहीँ अब
65% कलाकार (गीतकार,मॉडल,प्रोडूसर,फोटोग्राफर...इत्यादि)
मुसलमान हैं ।
.......
बॉलीवुड से अच्छे
कलाकारों ,गायकों को अनदेखा क्यों किया गया ?
जैसे - रजनीकांत,नागर्जुन,राहुल रॉय, सनी/
बॉबी देओल,सुनील शेट्ठी, कुमार सानु, अभिजीत,
उदित नारायण.. इत्यादि ।
गुलशन कुमार जो बॉलीवुड में गानों एवं भजन
द्वारा हिंदुत्व संस्कृति की उन्नतिकर रहे थे,
उनकी हत्या दाउद ने करवाई ।
इनके जगह वही कलाकार,गायक लाये गये
जो ज्यादा हमारी संस्कृति के विपरीत अभिनय कर
सकें ।
.......
आजकल के फिल्मों में अश्लीलता और गानों में
ज्यादा अल्लाह,खुदा, मौला..होता है ।
शुरू से ही अधिकतर बड़े बजट/बैनर के फिल्म सिर्फ
"खान" एक्टर्स को ही मिला है । बिकाऊ
मीडिया को अरब देशों से खूब पैसे मिलते हैं जो इन्हें
बहुत पब्लिसिटी करता है । इस कारण इनके फिल्म
100, 400 करोड़ से ज्यादा व्यापार करते हैं और
बाकी कलाकारों के फिल्म फ्लॉप होते हैं ।
.......
दाउद के भी बॉलीवुड से जुड़े होंने का प्रमाण,जांच
एजेंसी IB(इंटेलिजेंस ब्यूरो) दे चूका है।
भारत की खुफिया एजेंसी RAW भी शाहरुक खान के
ISI चीफ से रिश्तेदारी होने का प्रमाण साबित कर
चूका है ।
.......
सभी षड्यंत्र का कारण यही है, "भारत में हिन्दुओं
का चरित्र पतन करना और इस्लाम को धीरे धीरे
स्थापित करना "।
.......
अब आपको गंभीरता से यह सोचना है की, ये सारे
तथ्य महज एक संयोग है या एक बड़ी शाजिश!!

मुसलमान दर्जन बच्चे क्यों पैदा करते हैं ?


कुछ मौलवियों द्वारा मुसलमानों के कान भरे जाते हैं कि जितने ज्यादा हो सकें बच्चे पैदा करो,पर क्या मुसलमान कभी उन मौलवियों ये पूछते हैं हैं कि दर्जन भर बच्चे पैदा करने के बाद क्या तुम हमारे बच्चों को रोटी खिलाओगे या अल्लाह ताला ऊपर से नीचे आएँगे बच्चों को रोटियाँ खिलाने ?

कुछ ये भी कहते हैं कि जितने ज्यादा बच्चे होंगे उतनी जल्दी ही इस्लाम धरती पर राज करेगा, अरे राज तो बाद की बात है पर पहले जो पैदा हो रहे हैं कम से कम उनके लिए तो दो वक्त की रोटी वा तन ढकने को कपड़े का जुगाड कर लो, खाली पेट और नंगे बदन भी कभी राज होता है क्या ??

ज्यादा बच्चे पैदा करने का एकमात्र उद्देश्य दंगे,जिहाद और आतंकवाद को बढ़ावा देना है, जिससे गैर मुस्लिमों पर जल्दी हुकूमत कायम की जा सके.

मुसलमानों के लिए अतिशीघ्र दो बच्चों का कानून लाना है, अगर मुसलमान इस कानून का बहिस्कार करेंगे तो उनका भी आर्थिक बहिस्कार किया जाये.

हिन्दू समाज की लडकियाँ सबसे अधिक क्यूँ लव जिहाद का शिकार बनती हैं ?


1. क्यूंकि न तो हिन्दू समाज अपनी संतानों को धार्मिक शिक्षा देते हैं।
2. क्यूंकि न ही हिन्दू समाज वैदिक धर्म की श्रेष्ठता और अवैदिक मतों की निकृष्टता से अपनी संतानों को अवगत करवाते हैं।
3. क्यूंकि न ही हिन्दू समाज अपने घरों में धार्मिक माहौल रखता हैं?
4. बॉलीवुड की अश्लील फिल्में एवं साँस बहु के लड़ने वाले सीरियल से परिवार का वातावरण अधिक दूषित हैं।
5. राष्ट्रीय सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर परिवार के सदस्यों में परस्पर वार्तालाप की कमी होने से परिवार के सदस्यों के चिंतन की दिशा एक नहीं हैं।
6. हिन्दू समाज में केवल पैसा जोड़ना धार्मिक होने से अधिक महत्वपूर्ण हो गया हैं।
7. हिन्दू समाज अपनी संतानों को हमारे महान इतिहास, वीर पुरुषों, उनके तप और बलिदान की कहानियों से प्राय: अनभिज्ञ रखना।
8. धर्म के नाम पर भोझिल और उबाऊ अन्धविश्वास रुपी कर्म कांड को अधिक महत्व देना एक प्रमुख कारण हैं।
9.फेसबुक में ज्यादा लडकों से मित्र बनाना
10.फिल्मों का असर सबसे ज्यादा है..

Sunday, November 3, 2013

ये फोटो गोधरा ट्रेन के आरोपियों का हे जिन्होंने ट्रेन को जलाया था

ये फोटो गोधरा ट्रेन के आरोपियों का हे जिन्होंने ट्रेन को जलाया था... इनमे से 6 को आजीवन कारावास और 5 को फांसी की सज़ा सुनायी गयी है, लेकिन आपने इनके बारे में समाचार पत्र में कुछ सुना हे क्या....? पता हे क्यों ....?
क्योकि इस देश की कांग्रेस सरकार मुस्लिम वोट चाहती है


Thursday, October 31, 2013

आखिर क्यों दुनिया भर की सरकारों और एजेंसियो की नजर इन मुसलमानों पर हमेशा रहती है !!


●इस्लाम का प्रमुख उद्देश्य सभी गैर मुस्लिमो को इस्लामी झंड़े और शरिया कानून के दायरे मे लाना है !

●अगर करोडो मुस्लिम सामान्य जीवन जीते हुये दर्जनों बच्चे पैदा करके अपनी जनसंख्या मे इजाफा कर रहे है और सारे सिस्टम को अपने काबू मे करते जा रहे है, तो ये अत्यंत गंभीर समस्या है !
इसी मकसद के लिए मुस्लिम लोग इस्लाम और शरिया के लिए व्यवस्था मे अपनी पैठ बनाते है

●मुसलमान अपने इस्लामी सिद्धांतो के सहारे "इस्लाम को बढाने के मकसद' के लिये 1400 सालो से..अब तक राजनीतिक धार्मिक और सांस्कृतिक इस्लामी साम्राज्यवाद के जरिए दूसरे
देशो की व्यवस्था के लिए गंभीर समस्या पैदा कर रहे है !

√उपाय - इनका आर्थिक और सामाजिक बहिस्कार

इतिहास गवाह है कि जिस भी देश में मुसलमान बहुसंख्यक हो गए वो देश आतंकवाद, जिहाद, दंगे, और बम धमाकों की भेंट चढ़ गया।



मुसलमान जब अल्पसंख्यक होते हैं तो भाई बनकर रहते हैं और बहुसंख्यक होते ही ये कसाई बन जाते हैं। इतिहास गवाह है कि जिस भी देश में मुसलमान बहुसंख्यक हो गए वो देश आतंकवाद, जिहाद, दंगे, और बम धमाकों की भेंट चढ़ गया। 
पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब , इराक, अफगानिस्तान, सीरिया जैसे देश इसका जीता जागता उदहारण हैं। आज इन देशो में हिन्दू, बोद्ध, यहूदी धर्म समाप्त हो चुके हैं.....या तो उन्हें मार दिया गया या जबरन धर्म परिवर्तन करा दिया गया। और महिलाओ को बलात्कार के बाद यातनापूर्वक मार दिया गया। और यही स्थिति अगर हिंदुस्तान की रही तो यहाँ भी वही हालत हो जाएगी ...असम , कश्मीर और किश्तवाड़ में हम ये देख भी चुके हैं

मुसलमान क्यों लड़ते रहते हैं ?



मुसलमान किसी भी देश में रहें हमेशा फसाद करते रहते है , कई लोग इसका कारण राजनीतिक व्यवस्था और भ्रष्ट सरकारें बताते हैं , लेकिन असली कारण कुरान है , जो कहती है ...

وَأَعِدُّواْ لَهُم مَّا اسْتَطَعْتُم مِّن قُوَّةٍ وَمِن رِّبَاطِ الْخَيْلِ تُرْهِبُونَ بِهِ عَدْوَّ اللّهِ وَعَدُوَّكُمْ وَآخَرِينَ مِن دُونِهِمْ لاَ تَعْلَمُونَهُمُ اللّهُ يَعْلَمُهُمْ وَمَا تُنفِقُواْ مِن شَيْءٍ فِي سَبِيلِ اللّهِ يُوَفَّ إِلَيْكُمْ وَأَنتُمْ لاَ تُظْلَمُونَ. سورة الأنفال- Al-Anfâl -8:60
तुम आसपास के सभी लोगों से लड़ते रहो , चाहे तुम उनको जानते भी नहीं हो , और युद्ध के लिए सभी साधनों का प्रयोग करो .ताकि लोग भयभीत रहें .और लड़ाई के लिए तुम जो भी खर्चा करोगे अलह उसकी पूर्ति कर देगा , और अल्लाह अन्याय नहीं करता ” सूरा -अनफ़ाल 8 :60

लव जिहाद - पोस्ट 2



इस्लाम का अंतिम लक्ष्य एक दारुल – इस्लाम में पूरी दुनिया की को रूपांतरित करना है और इस लक्ष्य को पाने मे "लव जिहाद" को मुख्य हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है

वर्तमान लोकतांत्रिक सेटअप में, जनसांख्यिकीय शैली बदलकर या मुस्लिम आबादी द्वारा देशी जनसंख्या बढ़ाने के आधार पर एक दारुल- इस्लाम में बदला जा सकता है. यह जितनी जल्दी हो सके किया जाना चाहिए, और उनके गैर – मुस्लिम को मुस्लिम गर्भ में बदलने के की जरूरत है. प्रक्रिया दो आयामी लाभ है. सबसे पहले, यह मुस्लिम आबादी तेजी से और दूसरी प्रफुल्लित करने में मदद करता है.

मुसलमानों मे योजना बनाने में बुराई और षड़यंत्रपूर्ण या आपराधिक साजिश रचने में महान प्रतिभाएँ हैं. मान लीजिए कि एक हिंदू लड़की एक अकेली सड़क के माध्यम से गुजर रही है और तीन या चार मुस्लिम लड़के बैठे हुए हैं और उनमे से एक हिन्दू होने का नाटक करता है और बाकी के उस लड़की से छेड़छाड़ करते हैं तब वो नाटकी लड़का उस लड़की को बचाने का प्रयत्न करता हैं और बचा भी लेता है और इस घटना से उस लड़की के अंदर आकर्षण विकशित होना स्वाभाविक है और वे दोनों झूठे प्रेम मे फंस जाते हैं. जब लड़की पूरी तरह से फँस जाती है, तब वह उसे इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए निकाह करता है. अहमदनगर महाराष्ट्र मे अकेले, लगभग 300 हिंदू लड़कियों फंसाया गया और इस विधि का उपयोग किया गया.

तो अंत मे अपनी हिन्दू माँ बहनों से निवेदन हैं की आप लोग हमेशा सतर्क रहें और ऊपर लिखी हुई बातों को पूरे ध्यान मे रखें

लव जिहाद - पोस्ट 1



लव जिहाद – हिन्दू लड़की को अपने नकली प्यार मे फंसा कर धर्मांतरित करना ही इस जिहाद का मूल उद्देश्य है
मुसलमानों के अनुसार किसी भी काफिर देश को मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिए सबसे जरुरी है वहां की जनसँख्या का संतुलन बिगाड़ना. इसी लक्ष्य को पूराकरने और अपनी आबादी जल्दी बढाने के लिए वे गैर मुस्लिम लड़कियों को शिकार बनाते हैं और फिर उन्हें इस्लाम में परिवर्तित कर देते हैं.

इस जनसांख्यिकीय युद्ध में मुस्लिम गर्भ सबसे शक्तिशाली हथियार के रूप में उभरा है. तो, इस्लाम में एक गैर – मुस्लिम महिला का रूपांतरण बस एक मुस्लिम गर्भ और अधिक जिहादियों को जन्म देने में किया जाता है

प्रेम जाल में अधिक से अधिक लड़कियों को फँसाने के अपने अभियान के अंतर्गत बाहर ले जाने के लिए विशेष रैंक, पुरस्कार, और पैसा दिया जाता है. , कोझीकोड लॉ कॉलेज में एक पूर्व छात्र जहांगीर रजाक ने 42 लड़कियों की अकेले ही फंसा लिया और उन सब को मिलाकर एक सेक्स रैकेट चलाने लगा.
अहमदनगर महाराष्ट्र मे अकेले, लगभग 300 हिंदू लड़कियों फंसाया गया और इस विधि का उपयोग किया गया.

चेन्नई मे सरकारी संस्थाओं को पता हैं की इस सेक्स रैकेट और आतंकवादी संगठनों के बीच कोई कड़ी है. सऊदी अरब से इस काम के लिए बहुत फंडिंग की जाती है.
.........................
तो अंत मे अपनी हिन्दू माँ बहनों से निवेदन हैं की आप लोग हमेशा सतर्क रहें और ऊपर लिखी हुई बातों को पूरे ध्यान मे रखें, और भाइयों को सलाह है की ऐसे जिहादियों को जहाँ देखें धुनाई शुरू कर दें..

Monday, October 28, 2013

अगर भारत को टूटने से बचाना है तो भारत को जल्द से जल्द हिन्दू देश घोषित करो

जब पाकिस्तान को इस्लामिक देश घोषित
किया गया तब ...पकिस्तान में 25 % हिन्दू थे ..।
क्या इन मुल्लो ने 25 % हिन्दुओ को पुछा ...की. तुम्हे
इस्लामिक देश चाहिए या सेक्युलर देश .....?
__________________________________________

जब बांग्लादेश को इस्लामिक देश घोषित
किया गया तब ...बांग्लादेश में 33 % % हिन्दू थे ..।
क्या इन मुल्लो ने 33 % हिन्दुओ को पुछा ...की. तुम्हे
इस्लामिक देश चाहिए या सेक्युलर देश .....?

_________________________________________

और आज भारत में ...18 % मुस्लिम है फिर हम क्यों इन जिहादी से पूछ रहे है की तुम्हे हिन्दू-देश चाहिए
या सेक्युलर देश ...?

अगर भारत को टूटने से बचाना है तो भारत को जल्द से
जल्द हिन्दू देश घोषित करो ।।।

[ इस पोस्ट शेयर करो या मन में याद करो और अपने
सेक्युलर दोस्तों को बताओ ...]

बकरा ईद

जिस इस्लामी खूनी त्योहार को लोग "अज्ञानवश बकरा ईद
या बकरीद" कहते हैं...... उसका असली नाम..... " ईदुल अजहा" है ...
जिसका अर्थ.... "क़त्ल करने की ख़ुशी" होती है ...!
जिसे थोड़ी बहुत भी उर्दू आती होगी.....उन्हेंये भली-भांति मालूम
होगा कि...... ""कुर्बानी का मतलब बलिदान"" होता है .... और,
""कुर्बानी देने का मतलब खुद मरना"" होता है..... ""ना कि...
दूसरों को मारना""......!
जबकि.... जिबह का अर्थ..... किसी के गले पर छुरी फेरना ..... और,
उसकी हत्या करना है....!
हकीकतन ये हरामी मुल्ले ...... कुर्बानी का नाम लेकर .... हम हिन्दुओं
की भावना को आहात करने और हमें नीचा दिखाने के लिए.... खुलेआम
गौ हत्या करते हैं....!
वास्तव में..... बकरा ईद या बकरीद का असली उद्देश्य.......
मुसलमानों को हत्या करने का प्रशिक्षण देना है ..... जिसके
तहत ......पहले वह निरीह मूक जानवरों को मारते हैं ..... फिर, अभ्यस्त
होकर इंसानों की हत्या करते है ...!
इसके लिए चालाक मुल्ले इब्राहीम नाम के एक
नबी की कहानी का हवाला देते हैं .....जिसने अपने लडके
की कुर्बानी की थी ....और, उसी की याद में यह बकरा ईद मनाई
जाती है ....!
यहाँ तक कि.... मुल्ले मुहम्मद को उसी इब्राहीम का वंशज बताते हैं....!
लेकिन आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे कि...... यह सरासर झूठ है .....
क्योंकि, न तो इब्राहीम ने अपने लडके की कुर्बानी दी थी ....और,
ना ही मुहम्मद... किसी इब्राहीम का वंशज था .
दरअसल इब्राहीम एक झूठा ..... और निहायत
ही अन्धविश्वासी तथा व्यभिचारी व्यक्ति था.......जिसने
अपनी ही सगी बहन से सम्भोग किया था ...!
और, इसी तरह..... इब्राहीम के भतीजे..... लूत ने
भी अपनी सगी बेटियों के साथ सहवास करके बच्चे पैदा किये
थे .......और, मुहम्मद ने हिन्दुओं की आस्था पर चोट करने तथा उनके
दिल दुखाने के लिए गाय की कुर्बानी करने का आदेश दिया था ....!
और ... अगर..... मुल्लों की इब्राहीम और
कुर्बानी वाली बातों को एक क्षण के लिए मान भी लिया जाए
तो....... क्या कोई मुल्ला ये जबाब देगा कि.....
1 -जब यहूदी और ईसाई भी मुसलमानों की तरह इब्राहीम
द्वारा लडके की कुर्बानी की कहानी को मानते हैं ....तो, यहूदी और
ईसाई कुर्बानी क्यों नहीं करते .
2 - क्या इब्राहीम एक सदाचारी और सत्यवादी व्यक्ति था ????
3 - क्या इब्राहीम ने सचमुच ही अपने पुत्र
की कुर्बानी की थी ..क्योंकि ... इब्राहीम के तो दो लडके
थे ......इसहाक और इस्माइल ...... फिर, इब्राहीम ने
किसकी कुर्बानी करना चाही थी....????
4 -क्या मुहम्मद उसी इब्राहीम के बेटे का वंशज है ....????
6 -बाइबिल और कुरान में तो केवल एक "मेंढे (Ram )" की बात
कही है ..... फिर गाय की बात क्यों और कहाँ से आ गई .....????
7 -अपनी सगी बहन के साथ सहवास करने वाले नीच इब्राहीम पर
लानत क्यों नहीं की जानी चाहिए .?????
8. अगर सच में इब्राहीम ने अपने बेटे की कुर्बानी दी थी तो....
उसी का अनुकरण करते हुए ये मुल्ले भी गाय के बदले ..... अपने
सूअरों की तरह जन्मे 20 -25 बच्चों में दो चार
बच्चों की कुर्बानी क्यों नहीं दे देते हैं....????
दरअसल.... ये सब मुस्लिमों का ढोंग है.... और किसी ने
किसी की कुर्बानी नहीं दी थी थी..... तथा, ये बकरीद... हम हिदुओं
की भावना को आहात करने के लिए और, हमारा दिल दुखाने के लिए
मनाया जाता है...!!
और, ये नौटंकी तब तक... इसी तरह चलता रहेगा..... जबतक कि....
मुल्लों को उन्ही की भाषा में जबाब नहीं दिया जायेगा ...
जो भाषा उन्हें समझ आती है...!
जय महाकाल...!!!

इस्लाम में जातिवाद” के कुछ कड़वे तथ्य आपके सामने ..

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१. जबसे इस्लाम मज़हब बना है तभी से “शिया और सुन्नी” मुस्लिम एक दूसरे की जान के दुश्मन हैं, यह लोग आपस में लड़ते-मरते रहते हैं ...!!

२. अहमदिया, सलफमानी, शेख, क़ाज़ी, मुहम्मदिया, पठान आदि मुस्लिमों की जातियां हैं, और हंसी की बात, यह एक ही अल्लाह को मानने वाले, एक ही मस्जिद में नमाज़ नहीं पढते!!! सभी जातियों के लिए अलग अलग मस्जिदें होती हैं .!!
३. सउदी अरब, अरब अमीरात, ओमान, कतर आदि अन्य अरब राष्ट्रों के मुस्लिम पाकिस्तान, भारत और बंगलादेशी मुस्लिमों को फर्जी मुसलमान मानते हें और इनसे छुआछूत मानते हैं । सउदी अरब मे ऑफिसो मे भारत और पाक के मुसलमानों के लिए अलग पानी रखा रखता है |
४. शेख अपने आपको सबसे उपर मानते हैं और वे किसी अन्य जाति में निकाह नहीं करते.
५. इंडोनेशिया में १०० वर्षों पूर्व अनेकों बौद्ध और हिंदू परिवर्तित होकर मुस्लिम बने थे, इसी कारण से
सभी इस्लामिक राष्ट्र, इंडोनेशिया से घृणा की भावना रखते हैं..
६. क़ाज़ी मुस्लिम, ''भारतीय मुस्लिमों'' को मुस्लिम ही नहीं मानते... क्यूंकि उन का मानना है के यह सब भी हिंदूधर्म से परिवर्तित हैं !!!
७. अफ्रीका महाद्वीप के सभी इस्लामिक राष्ट्र जैसे मोरोक्को, मिस्र, अल्जीरिया, निजेर,लीबिया आदि राष्ट्रों के मुस्लिमों को तुर्की के मुस्लिम सबसे निम्न मानते हैं ।
८. सोमालिया जैसे गरीब इस्लामिक राष्ट्रों में अपने बुजुर्गों को ''जीवित'' समुद्र में बहाने की प्रथा चल रही है!!!
९. भारत के ही बोहरा मुस्लिम किसी भी मस्जिद में नहीं जाते, वो मात्र मज़ारों पे जाते हैं... उनका विश्वास सूफियों पे है... अल्लाह पे नहीं !!

१०. मुसलमान दो मुखय सामाजिक विभाग मानते हैं-

१. अशरफ अथवा शरु और २. अज़लफ। अशरफ से तात्पर्य है '
कुलीन' और शेष अन्य मुसलमान जिनमें व्यावसायिक वर्ग और निचली जातियों के मुसलमान शामिल हैं, उन्हें अज़लफ अर्थात् नीच अथवा निकृष्ट व्यक्ति माना जाता है। उन्हें कमीना अथवा इतर कमीन या रासिल, जो रिजाल का भ्रष्ट रूप है, 'बेकार' कहा जाता है।
कुछ स्थानों पर एक तीसरा वर्ग 'अरज़ल' भी है, जिसमें आने वाले व्यक्ति सबसे नीच समझे जाते हैं।
उनके साथ कोई भी अन्य मुसलमान मिलेगा- जुलेगा नहीं और न उन्हें मस्जिद और सार्वजनिक कब्रिस्तानों में प्रवेश करने दिया जाता है।
१. 'अशरफ' अथवा उच्च वर्ग के मुसलमान (प) सैयद, (पप) शेख, (पपप) पठान, (पअ) मुगल, (अ) मलिक और (अप) मिर्ज़ा।
२. 'अज़लफ' अथवा निम्न वर्ग के मुसलमान......
(A) खेती करने वाले शेख और अन्य वे लोग जोमूलतः हिन्दू थे, किन्तु किसी बुद्धिजीवी वर्ग से सम्बन्धित नहीं हैं और जिन्हें अशरफ समुदाय, अर्थात् पिराली और ठकराई आदि में प्रवेश नहीं मिला है।
(B) दर्जी, जुलाहा, फकीर और रंगरेज।
(C) बाढ़ी, भटियारा, चिक, चूड़ीहार, दाई,धावा, धुनिया, गड्डी, कलाल, कसाई, कुला, कुंजरा,लहेरी, माहीफरोश, मल्लाह, नालिया, निकारी।
(D) अब्दाल, बाको, बेडिया, भाट, चंबा, डफाली, धोबी, हज्जाम, मुचो, नगारची, नट, पनवाड़िया, मदारिया, तुन्तिया।
३. 'अरजल' अथवा निकृष्ट वर्ग भानार, हलालखोदर,हिजड़ा , कसंबी, लालबेगी, मोगता, मेहतर।
अल्लाह एक, एक कुरान, एक .... नबी ! और महान एकता......... बतलाते हैं स्वंय में ?
जबकि, मुसलमानों के बीच, शिया और सुन्नी सभी मुस्लिम देशों में एक दूसरे को मार रहे हैं .
और, अधिकांश मुस्लिम देशों में.... इन दो संप्रदायों के बीच हमेशा धार्मिक दंगा होता रहता है..!
इतना ही नहीं... शिया को.., सुन्नी मस्जिद में जाना मना है .
इन दोनों को.. अहमदिया मस्जिद में नहीं जाना है.
और, ये तीनों...... सूफी मस्जिद में कभी नहीं जाएँगे.
फिर, इन चारों का मुजाहिद्दीन मस्जिद में प्रवेश वर्जित है..!
किसी बोहरा मस्जिद मे कोई दूसरा मुस्लिम नहीं जा सकता .
कोई बोहरा का किसी दूसरे के मस्जिद मे जाना वर्जित है ..
आगा खानी या चेलिया मुस्लिम का अपना अलग मस्जिद होता है .
सबसे ज्यादा मुस्लिम किसी दूसरे देश मे नही बल्कि मुस्लिम देशो मे ही मारे गए है ..
आज भी सीरिया मे करीब हर रोज एक हज़ार मुस्लिम हर रोज मारे जा रहे है .
अपने आपको इस्लाम जगत का हीरों बताने वाला सद्दाम हुसैन ने करीब एक लाख कुर्द मुसलमानों को रासायनिक बम से मार डाला था ...
पाकिस्तान मे हर महीने शिया और सुन्नी के बीच दंगे भड़कते है ।
और इसी प्रकार से मुस्लिमों में भी 13 तरह के मुस्लिम हैं, जो एक दुसरे के खून के प्यासे रहते हैं और आपस में बमबारी और मार-काट वगैरह... मचाते रहते हैं.
*****अब आइये ... जरा हम अपने हिन्दू/सनातन धर्म को भी देखते हैं.
हमारी 1280 धार्मिक पुस्तकें हैं, जिसकी 10,000 से भी ज्यादा टिप्पणियां और १,00.000 से भी अधिक उप-टिप्पणियों मौजूद हैं..!एक भगवान के अनगिनत प्रस्तुतियों की विविधता,अनेकों आचार्य तथा हजारोंऋषि-मुनि हैं जिन्होंने अनेक भाषाओँ में उपदेश दिया है..
फिर भी, हम सभी मंदिरों में जाते हैं, इतना ही नहीं.. हम इतने शांतिपूर्ण और सहिष्णु लोग हैं कि सब लोग एक साथ मिलकर सभी मंदिरों और सभी भगवानो की पूजा करते हैं .
और तो और.... पिछले दस हजार साल में धर्म के नाम पर हिंदुओं में आपस में धर्म के नाम पर "कभी झगड़ा नहीं" हुआ .
इसलिए इन लोगों की नौटंकी और बहकावे पर मत जाओ... और...."गर्व से कहो हम हिन्दू हैं"...!