Monday, October 28, 2013

डॉ जाकिर नाइक के झूठ का भंडाफोड़



डॉ जाकिर नाइक हजारों की भीड़ में इस्लाम और बाकी मजाहिब (धर्मों) पर अक्सर बोलते देखे जाते हैं. वे खुद इस बात को बड़े फख्र से पेश करते हैं कि वो इस्लाम और बाकी मजहबों के तालिब इ इल्म (विद्यार्थी) हैं. वैसे कभी कभी वो खुद को इस इस बात में आलिम भी कहते हैं! असल में भी जब जाकिर भाई कुरान, हदीसों और दूसरी किताबों के हवाले (प्रमाण) बिना किसी किताब की मदद से केवल अपनी सनसनीखेज याददाश्त से देते हैं तो मौके पर ही हज़ारों को अपना मुरीद बना लेते हैं. हम खुद जाकिर भाईकी अधिकतर बातों से इतेफाक (सहमति) नहीं रखते थे लेकिन इस्लाम के लिए जाकिर भाई की कोशिशें काबिल ए तारीफ़ जरूर समझते थे.

हम अब तक यही सोच रहे थे कि जाकिर भाई इस्लाम की खिदमत में जी जान से हाजिर हैं. इसके लिए उन्होंने न जाने कुरान, हदीस, सीरत, वेद, पुराण, उपनिषद्, भगवद गीता, मनुस्मृति, महाभारत, तौरेत, बाईबल, धम्म पद, गुरुग्रंथ साहिब, और न जाने क्या कुछ न सिर्फ पढ़ डाला है बल्कि याद भी कर लिया है. दुनिया की हर मजहबी किताब में मुहम्मद (सल्लo) को ढूँढने का दावाभी किया है. इसके लिए उन्होंने ये सारी किताबें कितनी बारीकी से पढ़ी होंगी यह सोचनाकोई मुश्किल काम नहीं. पूरी दुनिया में इस्लाम का झंडा बुलंद करने की गरज (आवश्यकता)से सदा इधर उधर तकरीरें (भाषण) करते हुए भी इतना सब पढ़ डाला, यह अपने आप में एक सनसनी पैदा करने वाली बात है. हम यही सोचते हुए अल्लाह से दुआ कर रहे थे कि जाकिर भाई जैसी काबिलियत हमें भी बख्शें ताकि हम भी अपने मजहब की खिदमत इसी तरह कर सकें !

हम ये सब सोचते हुए दिन ही बिता रहे थे कि अचानक हम एक किताब से रूबरू हुए. इस का नाम था “Muhammad in World scriptures” मतलब “दुनियावी किताबों में मुहम्मद” मतलब (विश्वकी पुस्तकों में मुहम्मद). इसके लिखने वाले जनाब मौलाना अब्दुल हक विद्यार्थी हैं, जिन्होंने इसे १९३६ में लिखा था. जब इसे पढ़ा तो हम कुछ देर के लिए हैरान रह गए. हमें झटका सा लगा.

जाकिर भाई के सारे दावे लफ्ज़ दर लफ्ज़ (शब्दशः) इस किताब में मिलने लगे. जब इसे पूरापढ़ा तो हमारी हैरानी का ठिकाना न रहा जब हमनेदेखा कि मुहम्मद (सल्लo) के दुनिया की और मजहबी किताबों में होने के बारे में जाकिर भाई का सारा काम इस किताब की ज्यों की त्यों नक़ल ही है! इससे बढ़कर यह कि जाकिर भाई ने कहींभी अपनी किसी किताब, तक़रीर, या लेख में इन हजरत अब्दुल हक का नाम भी नहीं लिया, उनका शुक्रिया अदा करना तो बहुत दूर रहा. इस तरह चोरी से किसी की चीज पर हक जता कर अपने नाम सेपेश करने की सजा शरियत में क्या है, यह तो हम आगे लिखेंगे. लेकिन अभी इस मामले की सबसे हैरतंगेज और पूरी मुस्लिम उम्मत का दिल दहलादेने वाली इत्तला दी जानी बाकी है.

डॉ जाकिर नाइक ने जिस मौलाना की किताब से ये बातें चुराई हैं, वो कोई ऐसा वैसा मोमिन नहीं है. वो एक ऐसे फिरके (वर्ग) से है जिसे मुसलमानों का कोई फिरका मुसलमान नहीं समझता. यहाँ तक कि उन्हें काफिरों से भी बदतर समझा जाता है और सब मुस्लिम मुल्कों में उस पर पाबंदी है. जी हाँ! यह फिरका कादियानी मुसलमानों (?) का है जिसे अहमदी भी कहा जाता है. तो बात यह है कि मौलाना अब्दुल हक, जिसकी किताब से जाकिर भाई ने चोरी की है, वो एक कादियानी/अहमदी मुसलमान है, जिसको खुद जाकिरभाई भी मुसलमान नहीं समझते! जाकिर भाई खुले तौर पर कादियानियों को काफिर बोलते हैं.

इससे पहले हम आगे कुछ लिखें, बताते चलें कि मुसलमान दोस्त क्यों कादियानियों से नफरत करते हैं. असल में कादियानी फिरका मुहम्मद साहब को आखिरी पैगम्बर नहीं समझता. यह फिरका उन्नीसवीं सदी के एक आदमी मिर्ज़ा गुलाम अहमदकादियानी ने चलाया था जिसने आम मुसलमानों कीमुखालफत (विरोध) करते हुए खुद को मसीहा कहा था और साथ ही यह भी दावा किया कि उस पर भी अल्लाह के इल्हाम उतरते हैं जैसे मुहम्मद (सल्लo) पर उतरा करते थे. तो इस तरह कादियानी मुहम्मद (सल्लo) को आखिरी पैगम्बर नहीं मानते. यही नहीं, कादियानी फिरके के लोग यह भरोसा रखते हैं कि राम, कृष्ण, बुद्ध, गुरु नानक वगैरह भी अल्लाह के पैगम्बर थे. इसके साथ ही यह फिरका कल्कि अवतार (अल्लाह का इंसान बनके धरती पर आना) को आखिरी नबी बताता है. मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी को अपनी नबुव्वत पर इतना भरोसा था कि उसने उन लोगों को दोजख की धमकी दी जो उसमें ईमान नहीं लाये.

अब यहाँ बात आती है कि जाकिर भाई ने ऐसे आदमी की किताबों से चोरी करके मुसलमानों को गुमराह किया जो मुहम्मद को आखिरी रसूल नहीं मानता था, जो गैर कादियानियों के लिए सदा रहने वाली दोज़ख मानता था, जो अल्लाह का इंसान बनकर धरती पर आना मानता था, जो राम, कृष्ण, बुद्ध, नानक वगैरह को भी मुहम्मद की तरह ही पैगम्बर मानता था. मौलाना अब्दुल हक़ विद्यार्थी ने यह किताब लिखी ही कादियानी फिरके के सिद्धांतो को फ़ैलाने के लिए. इस कादियानी किताब से पहले आज तक किसी ने दावा नहीं किया था मुहम्मद के वेद, पुराण, धम्मपद आदि किताबो में होने का.
कादियानों के लिए तो यह बिलकुल ठीक ही है. क्योंकि इसी प्रकार वे राम, कृष्ण, बुद्ध को भी पैगम्बर साबित करते हैं. फिर उसी तरह मुहम्मद और फिर मिर्ज़ा गुलाम को भी उसी पैगम्बरी परंपरा का दूत दिखाते हैं. कादियानी फिरके के आलावा कोई और मुसलमान इस को नहीं मानता. और इसी कारण आज दुनिया के अधिकांश मुसलमान मुल्कों में कादियानी फिरके को सरकारी तौर पर भी काफिर माना जाता है. आज दुनिया का कोई आम मुसलमान काफिर कहलाना मंजूर कर सकता है लेकिन कादियानी नहीं. इसलिए एक सीधे साधे मुसलमान के साथ इससे बड़ा फरेब और कोई हो ही नहीं सकता. जाकिरनाइक अपने इस कारनामे से जिन जिन बुरी बातों के सरताज बने हैं, वे हैं-

शेष अगले भाग मे--
♣ डॉ जाकिर नाइक के झूठ का भंडाफोड़ ♣

डॉ जाकिर नाइक हजारों की भीड़ में इस्लाम और बाकी मजाहिब (धर्मों) पर अक्सर बोलते देखे जाते हैं. वे खुद इस बात को बड़े फख्र से पेश करते हैं कि वो इस्लाम और बाकी मजहबों के तालिब इ इल्म (विद्यार्थी) हैं. वैसे कभी कभी वो खुद को इस इस बात में आलिम भी कहते हैं! असल में भी जब जाकिर भाई कुरान, हदीसों और दूसरी किताबों के हवाले (प्रमाण) बिना किसी किताब की मदद से केवल अपनी सनसनीखेज याददाश्त से देते हैं तो मौके पर ही हज़ारों को अपना मुरीद बना लेते हैं. हम खुद जाकिर भाईकी अधिकतर बातों से इतेफाक (सहमति) नहीं रखते थे लेकिन इस्लाम के लिए जाकिर भाई की कोशिशें काबिल ए तारीफ़ जरूर समझते थे.

 हम अब तक यही सोच रहे थे कि जाकिर भाई इस्लाम की खिदमत में जी जान से हाजिर हैं. इसके लिए उन्होंने न जाने कुरान, हदीस, सीरत, वेद, पुराण, उपनिषद्, भगवद गीता, मनुस्मृति, महाभारत, तौरेत, बाईबल, धम्म पद, गुरुग्रंथ साहिब, और न जाने क्या कुछ न सिर्फ पढ़ डाला है बल्कि याद भी कर लिया है. दुनिया की हर मजहबी किताब में मुहम्मद (सल्लo) को ढूँढने का दावाभी किया है. इसके लिए उन्होंने ये सारी किताबें कितनी बारीकी से पढ़ी होंगी यह सोचनाकोई मुश्किल काम नहीं. पूरी दुनिया में इस्लाम का झंडा बुलंद करने की गरज (आवश्यकता)से सदा इधर उधर तकरीरें (भाषण) करते हुए भी इतना सब पढ़ डाला, यह अपने आप में एक सनसनी पैदा करने वाली बात है. हम यही सोचते हुए अल्लाह से दुआ कर रहे थे कि जाकिर भाई जैसी काबिलियत हमें भी बख्शें ताकि हम भी अपने मजहब की खिदमत इसी तरह कर सकें !

हम ये सब सोचते हुए दिन ही बिता रहे थे कि अचानक हम एक किताब से रूबरू हुए. इस का नाम था “Muhammad in World scriptures” मतलब “दुनियावी किताबों में मुहम्मद” मतलब (विश्वकी पुस्तकों में मुहम्मद). इसके लिखने वाले जनाब मौलाना अब्दुल हक विद्यार्थी हैं, जिन्होंने इसे १९३६ में लिखा था. जब इसे पढ़ा तो हम कुछ देर के लिए हैरान रह गए. हमें झटका सा लगा.

जाकिर भाई के सारे दावे लफ्ज़ दर लफ्ज़ (शब्दशः) इस किताब में मिलने लगे. जब इसे पूरापढ़ा तो हमारी हैरानी का ठिकाना न रहा जब हमनेदेखा कि मुहम्मद (सल्लo) के दुनिया की और मजहबी किताबों में होने के बारे में जाकिर भाई का सारा काम इस किताब की ज्यों की त्यों नक़ल ही है! इससे बढ़कर यह कि जाकिर भाई ने कहींभी अपनी किसी किताब, तक़रीर, या लेख में इन हजरत अब्दुल हक का नाम भी नहीं लिया, उनका शुक्रिया अदा करना तो बहुत दूर रहा. इस तरह चोरी से किसी की चीज पर हक जता कर अपने नाम सेपेश करने की सजा शरियत में क्या है, यह तो हम आगे लिखेंगे. लेकिन अभी इस मामले की सबसे हैरतंगेज और पूरी मुस्लिम उम्मत का दिल दहलादेने वाली इत्तला दी जानी बाकी है.

डॉ जाकिर नाइक ने जिस मौलाना की किताब से ये बातें चुराई हैं, वो कोई ऐसा वैसा मोमिन नहीं है. वो एक ऐसे फिरके (वर्ग) से है जिसे मुसलमानों का कोई फिरका मुसलमान नहीं समझता. यहाँ तक कि उन्हें काफिरों से भी बदतर समझा जाता है और सब मुस्लिम मुल्कों में उस पर पाबंदी है. जी हाँ! यह फिरका कादियानी मुसलमानों (?) का है जिसे अहमदी भी कहा जाता है. तो बात यह है कि मौलाना अब्दुल हक, जिसकी किताब से जाकिर भाई ने चोरी की है, वो एक कादियानी/अहमदी मुसलमान है, जिसको खुद जाकिरभाई भी मुसलमान नहीं समझते! जाकिर भाई खुले तौर पर कादियानियों को काफिर बोलते हैं.

इससे पहले हम आगे कुछ लिखें, बताते चलें कि मुसलमान दोस्त क्यों कादियानियों से नफरत करते हैं. असल में कादियानी फिरका मुहम्मद साहब को आखिरी पैगम्बर नहीं समझता. यह फिरका उन्नीसवीं सदी के एक आदमी मिर्ज़ा गुलाम अहमदकादियानी ने चलाया था जिसने आम मुसलमानों कीमुखालफत (विरोध) करते हुए खुद को मसीहा कहा था और साथ ही यह भी दावा किया कि उस पर भी अल्लाह के इल्हाम उतरते हैं जैसे मुहम्मद (सल्लo) पर उतरा करते थे. तो इस तरह कादियानी मुहम्मद (सल्लo) को आखिरी पैगम्बर नहीं मानते. यही नहीं, कादियानी फिरके के लोग यह भरोसा रखते हैं कि राम, कृष्ण, बुद्ध, गुरु नानक वगैरह भी अल्लाह के पैगम्बर थे. इसके साथ ही यह फिरका कल्कि अवतार (अल्लाह का इंसान बनके धरती पर आना) को आखिरी नबी बताता है. मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी को अपनी नबुव्वत पर इतना भरोसा था कि उसने उन लोगों को दोजख की धमकी दी जो उसमें ईमान नहीं लाये.

अब यहाँ बात आती है कि जाकिर भाई ने ऐसे आदमी की किताबों से चोरी करके मुसलमानों को गुमराह किया जो मुहम्मद को आखिरी रसूल नहीं मानता था, जो गैर कादियानियों के लिए सदा रहने वाली दोज़ख मानता था, जो अल्लाह का इंसान बनकर धरती पर आना मानता था, जो राम, कृष्ण, बुद्ध, नानक वगैरह को भी मुहम्मद की तरह ही पैगम्बर मानता था. मौलाना अब्दुल हक़ विद्यार्थी ने यह किताब लिखी ही कादियानी फिरके के सिद्धांतो को फ़ैलाने के लिए. इस कादियानी किताब से पहले आज तक किसी ने दावा नहीं किया था मुहम्मद के वेद, पुराण, धम्मपद आदि किताबो में होने का.
कादियानों के लिए तो यह बिलकुल ठीक ही है. क्योंकि इसी प्रकार वे राम, कृष्ण, बुद्ध को भी पैगम्बर साबित करते हैं. फिर उसी तरह मुहम्मद और फिर मिर्ज़ा गुलाम को भी उसी पैगम्बरी परंपरा का दूत दिखाते हैं. कादियानी फिरके के आलावा कोई और मुसलमान इस को नहीं मानता. और इसी कारण आज दुनिया के अधिकांश मुसलमान मुल्कों में कादियानी फिरके को सरकारी तौर पर भी काफिर माना जाता है. आज दुनिया का कोई आम मुसलमान काफिर कहलाना मंजूर कर सकता है लेकिन कादियानी नहीं. इसलिए एक सीधे साधे मुसलमान के साथ इससे बड़ा फरेब और कोई हो ही नहीं सकता. जाकिर नाइक अपने इस कारनामे से जिन जिन बुरी बातों के सरताज बने हैं, वे हैं-

शेष अगले भाग मे--

No comments:

Post a Comment