Monday, October 28, 2013

शिया सुन्नी संघर्ष

शिया समाज और मुसलमानों का यह झगड़ा आज का नहीं बल्कि बहुत पुराना है। इसकी शुरुआत सातवीं शताब्दी में हो गई थी जब मुसलमानों ने कर्बला के स्थान पर पैगम्बर के प्यारे नवासे इमाम हुसैन अ. को उनके तमाम सम्बंधियों सहित, अत्यन्त क्रूरता से मार दिया था। इतना ही नहीं दुधमुँहे बच्चों को भी नहीं बख्शा था। उस लड़ाई में इमाम हुसैन अ. की ओर से मोहियाल ब्राह्मण भी मुसलमानों के खिलाफ लड़े थे। शिया समाज का भारत के प्रति लगाव, प्रेम और श्रध्दा तभी से बनी हुई है।
मोहियाल ब्राह्मणों का उद्गम पेशावर के आसपास माना जाता है और ब्राह्मणों में मोहियाल मार्शल रेस माने जाते हैं। जम्मू कश्मीर के पुँछ में आज भी मोहियाल ब्राह्मणों के घर हैं।


इरान और इराक दोनों ही शिया बहुसंख्यक राज्य हैं। दरअसल इरान पर भी मुसलमानों ने सातवीं शताब्दी में ही आक्रमण करके उसे ग़ुलाम बनाया था और जल्दी ही उसे मतान्तरित कर दिया। शारीरिक रूप से तो इरानी पराजित हो गये, परन्तु मानसिक रूप से उन्होंने पराजय स्वीकार नहीं की। बाद में मुसलमानों द्वारा पैगम्बर के प्यारे नवासे इमाम हुसैन अ. की परिवार सहित निर्मम हत्या कर देने की घटना के बाद इरानियों को अपने अपमान का बदला लेने का अवसर मिल गया और वे अरबों के खिलाफ शिया समाज के रूप में संगठित होने लगे। उन्होंने अपने इस्लाम पूर्व इतिहास को छोड़ने से इन्कार कर दिया और नवरोज इत्यादि इरानी उत्सव जिनको इस्लाम निषेध भी नहीं करता पुनः मनाने प्रारम्भ कर दिये । तब से चला हुआ इरानियों और अरबों का युद्ध अब भी किसी रूप में चलता ही रहता है और दुनिया भर में शिया समाज कट्टर मुसलमानों के ग़ुस्से का शिकार होता रहता है। शिया समाज पैगम्बर के प्यारे नवासे इमाम हुसैन अ. की शहादत के दिन को याद करते हुये, उस दिन मुसलमानों ने जो अत्याचार किये थे, उसकी निन्दा करते हैं तो मुसलमान समाज आज भी उत्तेजित होता है और आम तौर पर इस दिन शिया समाज एक बार फिर मुसलमानों के हमले का शिकार होता है, ऐसा इसलिए होता है क्योकि पैगम्बर के प्यारे नवासे इमाम हुसैन अ. की निर्मम हत्या तत्कालीन क्रूर शासक यज़ीद बिन माविया ने की थी जिसे यह मुसलमान अपना खलीफ़ा मानते है और आज भी बेहद इज़्ज़त और प्रेम करते हैं और पैगम्बर के प्यारे नवासे इमाम हुसैन अ. से श्रेष्ठ मानते हैं हालाँकि स्वयं पैगम्बर ने यह ऐलान किया था की हुसैन मुझसे हैं और मई हुसैन से हूँ, जिसने हुसैन को तकलीफ पहुंचाई उसने मुझे तकलीफ पहुंचाई.

पाकिस्तान ने जब से अपने आपको इस्लामी गणतंत्र घोषित किया है, तभी से वहाँ का शिया समाज इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर है। शिया समाज के पूजा स्थानों पर आक्रमण वहाँ आम बात हो गई है और इन आक्रमणों में अब तक हज़ारों शिया मारे जा चुके हैं। जम्मू कश्मीर का गिलगित और बल्तीस्तान तो है ही शिया बहुसंख्यक इलाका। वहाँ पिछले दो दशकों से पंजाब व खैबर पख्तूनखवा से मुसलमानों को लाकर बसाया जा रहा है ताकि शिया समाज अल्पसंख्यक हो जाये। वहाँ शिया समाज के लोगों की हत्याओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है। भारत सरकार ने अपने इन नागरिकों के साथ हो रहे अन्याय के बारे में पाकिस्तान के पास कभी विरोध प्रकट नहीं किया। अब कट्टरपंथी मुसलमानों ने यही खेल कश्मीर घाटी में भी शुरू कर दिया है। शिया समाज का दोष इतना ही है कि वह कश्मीर घाटी में पाकिस्तान द्वारा की जा रही भारत विरोधी गतिविधियों का समर्थक नहीं है।


बड़गाम में जो शिया समाज पर आक्रमण हुआ है, उसे इसी व्यापक पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिये। बेमिना गाँव के खुमैनी चौक पर हुआ झगड़ा रात गाँव-गाँव में फैल गया और शिया इबादतगाहें भी इसके शिकार हुये। इससे पहले भी एक लड़की की आपत्तिजनक तस्वीरें सैल फोन पर डाले जाने से बड़गाम का शिया समाज मुसलमानों के ग़ुस्से का शिकार हुआ था। दरअसल बड़गाम में पिछले कुछ अरसे से हि़ज्बुल मुजाहिद्दीन, तबलीगी जमात और बहावी संगठनों का काम तेजी से बढ़ा है। इन संगठनों के प्रचार से मुसलमानों में कट्टरपंथ का विस्तार हुआ है। कश्मीर में इस्लाम के अरबीकरण की प्रक्रिया तेज हुई है, जिसके परिणामस्वरूप मुसलमानों में शिया समाज के प्रति ग़ुस्सा बढ़ रहा है। स्पष्ट है कि जिस तेजी से शिया समाज पर बड़गाम के दर्जनों गाँवों में हमले हुये, उसमें जरूर मुसलमानों के संगठित गिरोहों का हाथ रहा होगा। कश्मीर के शिया समाज को पाकिस्तान का विरोध करने की जो सजा मिल रही है, वह निश्चय ही निंदनीय है। लेकिन सबसे ज्यादा ताज्जुब तो इस बात का है कि मानवाधिकारों की माला जपने वाले जो संगठन बाटला हाउस कांड में शहजाद को उम्रकैद दिये जाने पर हलकान हो रहे हैं वे बड़गाम में फातिमा बीबी की हत्या पर मौन साध गये हैं। क्या केवल इसलिये कि वह अल्पसंख्यक शिया समाज की थी? उस बेचारी का तो कोई दोष भी नहीं था। वह अपने घर का समान बचाने में लगी थी कि मुसलमानों ने उस के सिर पर लोहे की छड़ें मारीं। अब दिग्विजय सिंह चुप क्यों हैं? क्या केवल इसलिये कि फातिमा की मौत पर मर्सिया पढ़ने से मुसलमानों के वोट चले जाने का डर है?

2 comments:

  1. False propaganda with the help of false literature to propagate hate among Indian hindu and Muslim brothers

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  2. Blogger is a nonsense which has become a toy in the hands of politicians

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